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________________ आचार के क्षेत्र में अहिंसा तथा विचार के क्षेत्र में अनेकान्त इसकी महत्वपूर्ण विशिष्टताएं हैं। इन दोनों गुणों के कारण उसने भारतीय दर्शन को एक नया निखार दिया है। इसी प्रकार पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में परमाणु पुल का सूक्ष्म चिंतन उसकी अलौकिक देन है। आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा का मार्ग प्रशस्त करने वाला बैन धर्म न केवल अध्यात्मवादी है, बल्कि अहिंसा, अपरिग्रह तथा अनेकान्त (उदारता) आदि सिद्धान्तों से लौकिक शांति तथा सामाजिक व्यवस्था का भी परिचायक है। इनके आधार पर सामाजिक विषमताओं का उन्मूलन, धार्मिक संघर्ष का शमन तथा पर्यावरण संरक्षण पूर्ण रूप से हो सकता है। यह जीवन के प्रत्येक पक्ष को समुन्नत बनाने में (अभ्युदय में) सतत सहयोगी है। हिंसा के इस उत्कर्षमय युग में इसको महती आवश्यकता है। बड़वाद के राक्षस द्वारा जकड़े हुए लोगों ने अपनी वास्तविकता को भुला दिया है। “आज के जगत् ने बहुत कुछ उपलब्धि की है किन्तु उसने उद्घोषित मानवता के प्रेम के स्थान में घृणा और हिंसा को अधिक अपनाया है तथा मानव बनाने वाले सदुणों को स्थान नहीं दिया है / 18 सामाजिक, लौकिक, राजनीतिक, आर्थिक समस्याएँ मूलतः हिंसामय है। वस्तुतः केवल जीवन व्यतीत करना ही अधिक मूल्यवान नहीं है, किन्तु आदमी के जीवन को बहुमूल्य जानना चाहिए, उस आदर्श जीवन के लिये सहायक एवं प्रेरणा स्रोत के रूप में जैन धर्म की उपयोगिता इतिहासज्ञ स्मिथ के शब्दों में व्यक्त है-बैन आचार शास्त्र सब अवस्था वाले व्यक्तियों के लिये उपयोगी है / वे चाहे नरेश, योदा,व्यापारी, शिल्पकार अथवा कृषक हों। वह स्त्री-पुरुष को प्रत्येक अवस्था के लिये उपयोगी है। जितनी अधिक दयालुता से बन सके, अपना कर्तव्य-पालन करो,सवरूप में यह जैन धर्म का मुख्य सिद्धान्त है। DDD जैन धर्म का इतिहास / 30
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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