________________ को मोक्ष का कारण माना है-'ऋते ज्ञानान्न मोक्षः, किसी ने भक्ति को भक्तिरेव मुक्तिदा' तथा किसी ने कर्म को महत्व दिया है—'योगः कर्मसु कौशलम्'। उपनिषदों में मुख्यतः तत्वज्ञान को ही मोक्ष का कारण माना गया है तथा कर्म-उपासना को गौण स्थान पर रखा गया है। बौद्ध, न्याय-वैशेषिक, सांख्य, शांकर-वेदान्त आदि दर्शन भी यही मानते हैं। भक्ति-सम्प्रदाय वालों के अनुसार भक्ति ही मुक्ति का श्रेष्ठ उपाय है तथा ज्ञान-कर्म गौण है। इसके मुख्य प्रणेता रामानुज, निम्बार्क, मध्व, वल्लभ इत्यादि हैं। भास्करानुयायी वेदान्ती, शैव ज्ञान तथा कर्म के समुच्चय को मोक्ष का कारण स्वीकार करते हैं। जैन दर्शन में एकान्ततः ज्ञान, कर्म अथवा भक्ति को मोक्ष का साधन नहीं मानते हुए इन तीनों के समुच्चय को स्वीकार किया है-'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र ये त्रिरत्न अथवा रत्नत्रय भी कहे जाते हैं। यदि ये सम्यक् अर्थात् आत्माभिमुखी न होकर लौकिक सुखादि के लिये किये जायें वो मुक्ति के बदले बंधन का संसाराभिवृद्धि का कारण हैं। इनके सम्यक् होने पर ही परिणाम की सम्यक्ता निर्भर है। अथवा इन तीनों का समन्वय न होकर मात्र एक ही हो तो भी उद्देश्य की प्राप्ति नहीं हो सकती, क्योंकि ये एक-दूसरे के परस्परापेक्षी हैं। इसलिये इनका समन्वित रूप ही मोक्ष का हेतु बताया गया है। - सम्यक् ज्ञान का तात्पर्य है-विवेकपूर्वक वस्तु के विभिन्न रूपों का परीक्षण कर उसके तथ्य को समझना। सम्यग्दर्शन का अर्थ है जिस सत्य का ज्ञान प्राप्त होता है, उसके प्रति आस्थावान् निष्ठावान) बने रहना तथा सम्यक्चारित्र से यहाँ आशय है जिस तत्व का सम्यग्ज्ञान प्राप्त कर लिया तथा जिस पर श्रदा भी है उसका आचरण भी करना, ज्ञान को क्रियात्मक रूप देना, क्योंकि पानी के ज्ञान से प्यास नहीं बुझती है, वस्तुतः स्वपर विश्वास श्रद्धा (दर्शन) है, स्व को जानना ज्ञान है, स्व में स्थिर होना चारित्र है और इन तीनों की एकरूपता ही मोक्षमार्ग है। साधनों के लिये पात्र के सन्दर्भ में स्त्री, शद्र आदि प्रतिबंध जैन धर्म में नहीं है। धार्मिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में उम्र, जाति, लिंग को महत्व न देकर योग्यता को ही महत्वपूर्ण माना है। महावीर के शिष्यों में हत्यारा अर्जुन माली, तस्कर रोहिणेय, चाण्डाल पुत्र मेतार्य और श्वपाक जाति में जन्मे हुए हरिकेशी इत्यादि इस सन्दर्भ में द्रष्टव्य हैं। उन्होंने अपने धर्म संघ में स्त्रियों को भी दीक्षित किया। . इस प्रकार से साधना मार्ग इत्यादि अनेक विशिष्टताएं जैनधर्म में दृष्टिगोचर होती हैं। जैनधर्म की प्रमुख विशेषताओं को किसी ने इस प्रकार से पद्यबद्ध किया 27 / पुराणों में जैन धर्म