________________ शरीरादिक का सुख छोड़कर उन्होंने आजगर व्रत ले लिया था। इस प्रकार कैवल्यपति भगवान ऋषभदेव निरन्तर परम आनन्द का अनुभव करते हुए प्रमण करते-करते कौंक, वेंक, कुटक आदि देशों में पहुंचे और कुटकाचल पर्वत के उपवन में उन्मत (परमहंस) की नाई (भांति) विचरण करने लगे। जंगल में बांसों की रगड़ से अचानक आग लग गई और उन्होंने उसी में प्रवेश करके अपने को भस्म कर दिया। .. विष्णु पुराण में भी ऋषभदेव का वर्णन है, जो पूर्वोक्त वर्णन से कुछ भिन्नता रखता है। उसके अनुसार भरत को राज्याधिकार सौंपने के पश्चात् वे तपश्चरण के लिये पुलहाश्रम चले गये। वहाँ तपश्चरण के कारण अत्यन्त कृशं हो गये। अन्त में अपने मुख में पत्थर की एक वटिया रखकर नग्नावस्था में उन्होंने महाप्रस्थान किया। इस प्रकार से ऋषभदेव के अन्तिम जीवन के सम्बन्ध में पुराणों में विभिन्न मत दर्शित होते हैं, जो जैन परंपरा से भिन्नता रखते हैं, किन्तु उनके माता-पिता, पुत्रादि का वर्णन, तपश्चरण, अनासक्त योग वर्णन, समदर्शी रहना, कैवल्य पति होना आदि जैन सम्मत तथ्य हैं। इसके अतिरिक्त भागवत पुराण में ऋषभदेव द्वारा अपने पुत्रों को दिया गया उपदेश भी जैन धर्म के अनुकूल ही है। उनको पुराणों में भी जैन धर्म के आद्य प्रवर्तक माना है तथा उनके पुत्र भरत के अनासक्त योग इत्यादि अनेक प्रसंगों का चित्रण हुआ है। शिव पुराण में उन्हें शिव के अट्ठाईस योगावतारों में गिनाया गया है तथा निवृत्ति मार्ग की वृद्धि के लिये उनका जन्म होने का वर्णन है। प्रभास पुराण में भी कहा गया ह" कैलाशे विमले रम्ये, वृषभोऽयं जिनेश्वरः / चकार स्वावतारं च, सर्वज्ञः सर्वग: शिवः // 5 इसी प्रकार अन्य अनेक पुराणों में भी उनका उल्लेख हुआ है। यद्यपि उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर ऋषभदेव के अस्तित्व काल की अवधि निश्चित नहीं की जा सकती, फिर भी जैन ग्रन्थों में वर्णित ऋषभदेव के समय की सामाजिक व्यवस्था ऋग्वेदकालीन समाज की अपेक्षा ज्यादा प्राचीन है। ऋषभकालीन समाज में राज्य, लेखन-पाठन, कृषि, वाणिज्य शास्त्रादि की व्यवस्थाएँ नहीं थी। वर्तमान लग्नप्रथा भी नहीं थी। साथ-साथ उत्पन्न युगल ही पति-पत्निवत् व्यवहार करते थे, जबकि ऋग्वेद में इन व्यवस्थाओं अर्थात् कृषि, शस्त्र, राज्य, युद्ध आदि का उल्लेख स्पष्टतः है, साथ ही लग्नप्रथा भी उससे भिन्न है जो कि यम-यमी संवाद से स्पष्ट हो जाता है। अतः ऋग्वेद का समाज ऋषभदेवकालीन समाज से आगे बढ़ा हुआ है, जैन धर्म का इतिहास / 16