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________________ तीन प्रकार का होता है। इसी को त्रिगुणात्मिका प्रकृति कहते हैं। महत्त्व से अहंकार (तीन प्रकार का) आविर्भूत हुआ। जिस प्रकार प्रधान से महत् आवृत होता है, वैसे ही अहंकार समावृत होता है। महत् से आवृत अहंकार भूतादि विकृतियों को करता हुआ सर्वप्रथम शब्दतन्मात्रा को जन्म देता है / शब्दतन्मात्रा से आकाश,उनसे स्पर्शतन्मात्रा, स्पर्श गुण वाले वायु से रूपतन्मात्रा तथा ज्योति की समुत्पत्ति, उससे रसतन्मात्रा का सृजन होता है और इसके अनन्तर जल की समुत्पत्ति, बल से गन्धतन्मात्रा तथा उससे पृथ्वी की उत्पत्ति होती है। इसके पश्चात् अण्डोत्पत्ति एवं उस अव्यक्त विष्णु के स्वेदज अण्ड, जरायु, महीधर, समुद्र गर्भोदक बने। उससे देवासुर, मानव तथा सबका आविर्भाव हुआ। रजोगुण धारक परात्पर हरि स्वयं ही ब्रह्म का स्वरूप धारण कर जगत् की संरचना में प्रवृत्त होते हैं। जब तक कल्पों की विकल्पना रहती है. हरि ही युगों के अनुरूप जगत् का पालन करते हैं। जब हरि की इच्छा होती है तो नरसिंह स्वरूप से, रूद्र से वही इसका संहार भी करते हैं। विष्णु पुराण तथा अन्य पुराणों में भी सृष्टि की लम्बी प्रक्रियाओं का वर्णन है, जिनमें काफी अन्तर भी है, परन्तु मूल मन्तव्य तो यही है कि सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति, लय के आदिकारण ईश्वर हैं। चाहे वह ब्रह्मा, आदिब्रह्म, हरि, विष्णु, शिव, देवी इत्यादि कोई भी हो। ईश्वर कर्तृत्व का इसके विरोधियों ने प्रचुर खण्डन किया। न केवल श्रमण दर्शनों ने इसके विरुद्ध कई तर्क दिये हैं अपितु वेदों में भी ईश्वर के सृष्टि कर्तृत्व के विरुद्ध कहा गया है-त्रिनाभि, तीन ऋतुओं वाला यह संवत्सर अजर-अमर है। ये सूर्य आदि लोक, मूलसहित कभी नष्ट नहीं होते। प्रजापति भी स्वयं कहता है कि इनमें से प्रथम कौन पदार्थ उत्पन्न हुआ, यह मैं नहीं जानता न विजानामि यतरा परस्तात् , ___ मीमांसा-दर्शन में ईश्वर कर्तृत्व का अनेक युक्तियों के साथ निषेध किया गया है। इसके अनुसार जगत् के पूर्व जब कुछ भी नहीं था तो वह ईश्वर किस जगह रहता था? यदि आप कहें कि वह निराकार है, उसे पृथ्वी आदि के आधार की आवश्यकता नहीं, तो निराकार में इच्छा और प्रयल किस प्रकार सिद्ध करोगे, क्योंकि सर्वव्यापक निराकार में आकाशवत् क्रिया असंभव है। इसी प्रकार इच्छा शरीर का धर्म है। अशरीरी के इच्छा नहीं होती। अतः निराकार मानने पर सृष्टिकर्ता सिद्ध नहीं हो सकता। यदि साकार, सशरीरी मानो तो उसके लिए आधार की आवश्यकता है, परन्तु प्रलय में आधाररूप पृथ्वी का तो आप अभाव मानते हैं, अतः यह प्रश्न होता है कि वह रहता कहाँ था? ___जगत् को बनाते हुए ईश्वर को किसने देखा? आधक्रिया किस प्रकार प्रारम्भ हुई और किस स्थान से प्रारम्भ हुई ? यदि किसी स्थान विशेष से तो इस विशेषता ईश्वर की अवधारणा / 248 .
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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