________________ का क्या कारण है? यदि सर्वत्र एक साथ क्रिया प्रारम्भ हुई तो सृष्टि का क्रम न रहा? उस शान्त परमेश्वर में यह अशान्तिप्रद इच्छा ही क्यों उत्पन्न हुई? सर्वव्यापक ईश्वर की क्रिया से जगत् का बनना असम्भव है, क्योंकि जिस प्रकार चुम्बक पत्थर लोहे के चारों ओर होने से लोहा क्रिया नहीं कर सकता, उसी प्रकार परमाणुओं के चारों ओर ईश्वर की सत्ता होने से तथा सब ओर से क्रिया देने से परमाणु भी वहीं स्थित रहेगा। यदि कहा जाए कि परमात्मा परमाणुओं के अन्दर भी व्यापक है इसलिए वह अन्तक्रिया देता है, तो भी परमाणुओं में क्रिया नहीं हो सकेगी, क्योंकि परमाणुओं के जो बाहर ईश्वर है, वह अन्तक्रिया का अवरोधक है। अतः ईश्वर विश्व को नहीं रच सकता। यदि ईश्वर सशरीरी एकदेशी है तो उस शरीर का स्रष्टा कोन है? यदि उसका भी कोई शरीरी कर्ता है तो उसके शरीर का कर्ता कौन है? इस.प्रकार अनवस्था दोष आएगा। इस दुःखमय जगत की रचना कर अनन्त जीवों को दुःख-सागर में डालने से उसे क्या लाभ हुआ? यदि वह नहीं बनाता तो उसका क्या बिगड़ता? यदि कहा जाए कि स्वभाव है तो वह सुधार क्यों नहीं लेता? यदि यह ईश्वर की दया है तो प्रश्न होता है कि दया किस पर? प्रलयकाल के पहले तो कोई दयनीय नहीं था, सबके सब सुखी थे, क्या सुखी जीवों को दुःख में डालने का नाम अनुकम्पा है? दया दिखलाना ही उद्देश्य था तो सुखमय संसार की रचना करनी थी। क्या ऐसा करना उसकी शक्ति के बाहर था? . ___ यदि कहा जाए कि सुख-दुःख कर्मानुसार जीव भोगता है तो ईश्वर की बीच में क्या जरूरत है? क्या उसका कोई स्वार्थ था? यदि यह उसकी क्रीड़ा या लीला है तो इससे संसार तंग आ चुका है, कब तक वह बालक बनकर क्रीड़ा करता रहेगा? वह प्रलय क्यों करता है? क्या काम करते-करते थक जाने से आराम करने लगता है या साधन खराब हो जाते हैं, उन्हें ठीक करने लगता है? यदि यह भी दया है तो बनाना और बिगाड़ना दो परस्पर विरुद्ध बातें हैं, दोनों का एक दया प्रयोजन नहीं हो सकता। ___. * यदि कहा जाए कि जगत् बनाने में वेद प्रमाण हैं तो वेद में कथित पदार्थों का वेद के साथ सम्बन्ध है या नहीं ? यदि नहीं है तब वेद असत्यभाषण के दोषी हैं। यदि है तो वेदों के नित्य होने से उन पदार्थों की नित्यता स्वयं सिद्ध हो गई। अतः जगत रचना की कल्पना, युक्ति और प्रमाण से खण्डित होने के कारण मिथ्या है। फिर उन वाक्यों को वेद बनाने वाले ने अपनी प्रशंसा प्रगट करने के लिए नहीं लिखा, इसका क्या प्रमाण है ? . इसी प्रकार सांख्य भी ईश्वर कर्तृत्व का विरोध करता है। सांख्य-योग में 249 / पुराणों में जैन धर्म