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________________ दूसरा दुःख उनके लिए तैयार रहता है। संक्षिप्ततः वहाँ क्षेत्रकृत, पारस्परिक तथा देवकृत-इन तीन प्रकार के कष्ट बताये गये हैं।" पुराणों में विभिन्न कुण्डों का उल्लेख करते हुए उनके नामानुसार दुःखों का वर्णन है, जो कि अनलिखित है१. रौरव 2. महारौरव 3. तामिस्र 4. अन्धतामिस्र 5. कालचक्र 6. अप्रतिष्ठ 7. घटीयन्त्र 8. असिपत्रवन 9. तप्तकुम्भ 10. कूटशाल्मली . 11. करपत्र 12. श्वान भोजन 13. सदंश 14. लोहपिण्ड 15. करम्भसिकता 16. भयंकर क्षार नदी 17. कृमि भोजन 18. घोर वैतरणी नदी 19. शोणित पूय भोजन 20. क्षुराप्रधार 21. निशितचक्र 22. संशोषण पापियों को दुःख का भोग कराना ही इन कुण्डों का प्रयोजन है। ये भयंकर कुण्ड अत्यन्त भयावह तथा कुत्सित हैं। दस लाख किंकरगणं सदा इन कुण्डों की देखरेख में नियुक्त रहते हैं। वे भयंकर एवं मदाभिमानी किंकर हाथों में भयावह गदा और शक्ति लिए रहते हैं। उनमें दया का नाम तक नहीं होता। उन्हें कोई किसी प्रकार भी रोक नहीं सकता।२ उपर्युक्त वैतरणी, असिपत्र, कूटशाल्मली आदि का उल्लेख जैनागमों में वर्णित नरक-वर्णन में वेदनाओं के रूप में आता है। तिर्यंच तिर्यंच के भी बहुत से प्रकारों का जैनागमों में वर्णन है। एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक तिर्यंच अनेक प्रकार के होते हैं। पुराणों में इस योनि का वर्णन सर्ग के अन्तर्गत चतुर्थ तथा पंचम सर्ग में आता है। चतुर्थ सर्ग में स्थावरों का तथा पंचम सर्ग में तिर्यंच योनिरूप तिर्यक् स्रोत कहा गया है।७३ मनुष्य ___मनुष्यगति का महत्त्व जैन दर्शन और पुराण दोनों में अंकित है। मनुष्यत्त्व को मोक्ष-हेतु साधनभूत बताते हुए उसे जैनागमों में चार दुर्लभ अंगों में प्रथम स्थान पर रखा गया है। विश्व की अनन्तानन्त जीव राशि के सम्मुख मनुष्य उतने ही हैं, जगत् - विचार / 238
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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