________________ / / 66. (अ) आचारांग सूत्र 2.6.1 (ब) “सर्वसम्पत्करी चैका पौरूषनी तथापरः वृत्ति भिक्षा च तत्त्वज्ञैरिति भिक्षा विधोदिता" . -हरिभद्रीय अष्टक 5.1 साहारणो वपुण विही सुक्काहारा विन्नेओ अन्नत्थ ओयएसो सव्वा संपक्करी भिक्खा // -योगशतक 81 / 67. अब्बिन्दुं य: कुशाग्रेण मासि मासि समश्नुते न्यायतो यश्चरेद् भैक्ष्यं पूर्वोक्तात्सविशिष्यते // दघिभक्ष्याः पयोभक्षा ये चान्ये जीवक्षीणका: सर्वे ते भैक्ष्य भैक्षस्य कलां नार्हति षोडशीम् // ..:-लिंगपुराण (1) पृ. 48 68. उत्तराध्ययन 30.8; दूसरा अध्याय 69. (अ) व्यस्ते विधुमे व्यंगारे - भैक्ष्यं चरेद् गृहस्थेषु.....जघन्या वृत्तिरिष्यते // .. -मार्कण्डेयपुराण 38. 5-10 (ब) शान्तिश्च श्राद्ध...जघन्या वृत्तिरुच्यते // –लिंगपुराण (2) पृ 47-48, श्लो. 11-16 "एमेए समणा वुत्ता, जे लोए संति साहुणो विहंगमा व पुफ्फेसु दाणभत्तेसणे रया" -दशवैकालिक, 1.3 71. दशवैकालिक 5.1. 37-38 72. वही, 5.1. 37, 17 73. वही, 5.2.25 74. सम्यग्दर्शनसम्पन्न: कर्मभिर्न निबध्यते दर्शनेन विहीनस्तु, संसारे प्रतिपद्यते / -मनुस्मृति, 6.74 75. (अ) अक्कोसवहं विइत्तु धीरे_सभिक्खु // पत्तं सयणासणं .....सभिक्खु // -उत्तराध्ययन 15.3-4 तथा 35.13 (ब) समे य जे सव्वपाणभूएसु से हु समणे। -प्रश्नव्याकरण 2.5 (स) तो समणो जइ सुमणो, भावेण य जइ ण होइ पावमण माणावमाणेसु / / -अनुयोगद्वार, 132 (द) सव्वं जगं तु समयाणुपेही, पियमप्पियंकस्स विनों करेजा॥ -सूत्रकृतांग, 1.10.6 76. लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा समो निन्दा पसंसासु, समो माणावमाणओ // -उत्तराध्ययन, 19.91 उवसमसारं खु सामण्णं -बृहत्कल्पभाष्य 1.35 77. कूर्म पुराण (1) पृ. 65-67 78. सम शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः। -नारदपुराण (1) पृ 485, श्लो. 94 79. न मिथ्या संप्रवर्तन्ते शमस्यैव तु लक्षणम् अनुद्विग्नो ह्यनिष्टेषु तथेष्टान्नाभिनन्दति // -लिंगपुराण (1) पृ. 103, श्लो 26 80. मृष्टं न मृष्टमप्ये.....कार्य साम्यं हि मुक्तये // -विष्णुपुराण (1) पृ. 354, 2.15. 26-31 सर्वमात्ममयं यस्य सदसद् जगदीदृशम् गुणागुणमयं तस्य क: प्रिय: को नृपप्रियः / / -पार्कण्डेयपुराण, 38.25 विशेष आचार / 214