________________ -स्कन्द पुराण (1) 40. 81, 83. (स) अवगाह्यापि मानिती ह्यन्तश्शौचविवर्जितः। शैवला झषका मत्स्या सत्वा मत्स्योपजीविनः / / सदा बाह्य सलिले विशुद्धाः कि द्विजोत्तमाः / / -लिंग पुराण (1) पृ. 73 श्लो. 34-35 (द) श्री वि नाम शास्त्री —'कालिका पुराणम्' पृ. 103 18.81-82 ... (य) निगृहीतेन्द्रिय ग्रामो क्षेत्रे च वसेन्नरः तत्र कस्य कुरुक्षेत्र नैमिषे पुष्कराणि च // -स्कन्द पुराण (2) 47.40 159. (अ) आत्मा नदी संयम पुण्यतीर्था सत्योदका शीलशमादि युक्ता तस्यां सात: पुण्यकर्मा पुनाति न वारिणा शुद्ध्यति चान्तरात्मा / / -वामन पुराण (1) 43.25 (ब) स्कन्द पुराण (2) 47.29-33 (स) लिंग पुराण (1) पृ. 73, श्लो. 36-37 (द) वही, पृ. 158, श्लो. 10-14 (य) ज्ञानहृदे ध्याबले रागद्वेषमलापहे . य: स्नाति मानसे तीर्थे स याति परमां गतिम् / / -गरुड़ पुराण (1) पृ. 252, 44.23 एवं 22, 24. 160. उत्तराध्ययन 12.38 (लेखकत्रय—'तीर्थंकर महावीर' पृ. 7). धम्मे हरए बंभे संति तित्थे, अणाविले उत्तपसण्ण लेसे जहिं सिण्हाओ विमलो विसुध्दो सुसीइ भुओपजहासि दोस / / एयं सिणाणं कुसलेहिं दिटुं महासिणाणं इसिणं पसत्थं जहिं सिण्हाया विमला विसुध्दा, महारिसी उत्तमठाणपत्ते // -उत्तराध्ययन 12. 46-47 000 सामान्य आचार/ 180