________________ 136. (आ) योगशास्र 2.8 (ब) जैन धर्म की हजार शिक्षाएं पृ. 4 (स) योगशास्र, द्वितीय प्रकाश, 8-10 (अ) गुरोरवज्ञया सर्वं नश्यतीति किमद्भुतम्। -स्कन्द पुराण (1) पृ. 131, 9.32 (ब) गुर्वाज्ञाविरहितं चोरवत्सकलं भवेत्। -शिव पुराण (1) श्लो. 31, (स) गुरुपूजामकृत्वैव यश्शास्रं श्रोतुमिच्छति न करोति च शुश्रूषामाज्ञां च भक्तिभावत: // (द) सुमहत्पातकान्याहुश्शिवनिन्दासमानि च // –शिव पुराण (2) पृ. 153. श्लो. 18-22 138. (अ) आणानिद्देसकरे, गुरुणामुववायकारए (ब) इंगियागारसम्पन्ने, से विणीएत्ति वुच्चई // .. -उत्तराध्ययन 1.2 (स) जो छंदमाराहयइ स पुज्जो। -दशवैकालिक 9.3.1 (द) अणुसासिओ न कुप्पिज्जा। उत्तराध्ययन 1.9 (य) हियं तं मण्णई पण्णो, वेसं होई असाहुणो। -उत्तराध्ययन 1.28 () समए पंडिए सासं हयं भदं व वाहए। -उत्तराध्ययन 1.37 139. (अ) विष्णुपुराण 3.12.24 (ब) उत्तराध्ययन–१.१९ 140. (अ) शिव पुराण (2) पृ. 454, श्लो. 20-21 (ब) वही पृ. 455, श्लो. 22-280 (स) वही, श्लो. 29-31 (द) ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्र.खं. 26. 12-15 141. (अ) न कोवए आयरियं -उत्तराध्ययन 1.40 (ब) जैन धर्म की हजार शिक्षाएं-पृ. 7 . . (स) अणाबाहसुहाभिकंखी, __गुरुप्पसायाभिमुहो रमिज्जा // -दशवैकालिक 9.1.10 142. भक्त परिज्ञा 93 143. (अ) नारद पुराण (1) पृ. 159-160. -श्लो. 103-109 (ब) वही पृ. 163, श्लो. 122-125 (स) वही, पृ. 247, श्लो. 25-26 144. समाहिकारए णं तमे समाहिं पडिलब्मई -भगवती सूत्र 7.1 असंगिहीयं परिजणस्स संगिण्हणयाए अब्भुट्टेयव्वं भवइ / -स्थानांग 8 तत्वार्थ सूत्र 7.33 146.. संग्रहैकपरप्राप्त: समुद्रोऽपि रसालतम् दाता तु जलद: पश्य भुवनोपरि गर्जति / / 147. स्कन्द पुराण (1) पृ. 192 श्लो. 63-64 148. स्थानांग सूत्र 4.3 149. डॉ. वशिष्ठ नारायण सिन्हा ____'जैन धर्म में अहिंसा' -पृ. 190 145. तत्वाथ सामान्य आचार / 178