________________ (ल) सर्वधर्म वरिष्ठोऽयमाचारः परमं तप: तदेव ज्ञानमुद्दिष्टं तेन सर्वं प्रसाध्यते / / त्यक्त्वाचारविधानोऽत्र वर्तते द्विजसत्तमः स शूद्रवत् बहिष्कायों यथा शूद्रस्तथैव स: // -देवीभागवत पुराण (1) पृ. 316 श्लो. 14-15 3. सूत्रकृतांगसूत्र 1.12.11 4. उत्तराध्ययन 28.2, तत्वार्थ सूत्र 1.1 5. आवश्यक नियुक्ति (आचार्य भद्रबाहु) श्लो. 97-102 6. (अ) जहा सूणी पूईकन्नी, निक्कसिज्जई सव्वसो। एवं दुस्सील पडिणीए, मुहरी निक्कसिज्जई / / कणकुण्डगं चइत्ताणं, विट्ठ भुंजइ सूयरे . एवं सील चइत्ताणं, दुस्सीले रमई मिए / -उत्तराध्ययन 1.4-5 (ब) चीराजिणं नगिणिणं, जडी संघाडि मुण्डिणं एयाणि वि न तायन्ति दुस्सीलं परियागयं / / -उत्तराध्ययन 5.21 7. (अ) अ. सर्वानन्द पाठक–“विष्णु पुराण का भारत” अष्टम अंश से उद्धृत (ब) महाभारत, कर्ण 69.58 . (स) "Dharma came to mean peculiar duties,and privileges of a person as a member of aryan community, as a member of one of the varhas or as in a particular stage of life." -कल्याण धर्मांक पृ. 145 से उद्धृत "That which is worthy of being adopted and put into practice is Dharma." - Jaydayal Goyandka What is Dharma' p. 2. दुर्गतिप्र-पतत्प्राणि-धारणाध्दर्म उच्यते / -योगशास्त्र 2.11 9. (अ) एको हि जायते जन्तुरेक एव विपद्यते धर्मस्तमनुयात्येको न सुतं न च बांधवाः / / -मत्स्य पुराण (2) पृ. 235 आत्मैव न सहायार्थ पिता माता च तिष्ठति (ब) न पुत्र दारा न ज्ञातिधर्मं तिष्ठति केवलम् तस्माध्दर्म सहायार्थ नित्य सश्चिनुसाधनैः धर्मेणैव सहाय्यास्तु तमस्तरित दुस्तरम् / / -देवी भागवत पुराण (2) पृ. 316 श्लो, 7-8 (स) कुशला-कुशल कर्म धर्मा-धर्माविति स्मृतो / धारणार्थे महान् ह्येष धर्मशब्दः प्रकीर्तितः / / xxxx अष्टप्रापको धर्म आचार्यरुपदिश्यते // -लिंग पुराण (1) पृ. 101, श्लो. 12-13 10. अबन्धूनामसौ बन्धुरसखीनामसौ सखा अनाथानामसौ नाथो, धर्मो विश्वैकवत्सलः // -योगशास्र (आचार्य हेमचन्द्र) 4.100 सामान्य आचार / 164