________________ 78. समवायांग 2 79. तत्त्वार्थ सूत्र 8, 2 80. प्रज्ञापना 23, 1, 290 8. उत्तराध्ययन 33, 7 82. मणो साहसिओ मीमो, दुट्ठस्सो परिधावइ तं सम्मं तु निगिण्हामि, धम्मसिक्खाइ कंथगं / / -उत्तराध्ययन-२३, 58 83. योगशास्त्र–चतुर्थ प्रकाश 84. शिव पुराण 7, 1, 5, 53 85. “मानसं च तथा पापं तादृशं नाशयेद् द्विजाः मानस वज्रलेपं तु कल्प कल्पानुगं तथा" - शिव पुराण, विद्येश्वर संहिता, 12, 38, 39 86. विष्णु पुराण (2) पृ. 397, श्लो. 28 87. जितेन्द्रचन्द्र भारतीय . __ -'शिव पुराण में शैवदर्शन तत्त्व' पृ. 142. “कायवाङ्मन: कर्मयोग:" . "स आस्रवः" "शुभ: पुण्यस्याशुभ: पापस्य” “सकषायाकषाययोः साम्परायिकर्यापथयोः” -तत्त्वार्थसूत्र 6, 1-4 89. “शुभाशुभं च यत्किंचित् . .. स्वकर्मफलभुक् पुमान्” -ब्रह्मवैवर्त पुराण (1) पृ. 215, श्लो. 19 90. (अ) "आस्रवनिरोधसः संवरः" ___“स समितिगुप्तिधर्मानुप्रेक्षापरिषहजयचारित्रैः” / -तत्त्वार्थसूत्र 9, 1-2 (ब) उत्तराध्ययन 3, 30 91. पद्म पुराण (2) पृ. 404, श्लो. 88 . . 92.. भगवती सूत्र 25, 7, 801 93. “कर्मनिर्मूलने मुक्तिः " / -ब्रह्मवैवर्त पुराण (1) पृ. 215, श्लो. 19 94. तत्त्वार्थ सूत्र 10, 3 95. योगशास्त्र 4, 5 . 96. शिव पुराण, कोटिरुद्रसंहिता, अध्याय 23 97. “शुभाशुभ भुञ्जते च कर्मपूर्वार्जितं परम् * * कर्मनिर्मूलने मुक्ति..." -ब्रह्मवैवर्त पुराण (1) पृ. 275, श्लो. 19 98. पुण्य पापं विनिर्मुक्ताय प्राप्य च पुनर्भवम् न योगिनः प्राप्नुवन्ति तमस्मि शरणं गतः // -वामनपुराण (2) पृ. 382, अ. 86, श्लो. 78 99. तत्त्वार्थ सूत्र 1,1 100. महात्मा भगवानदीन “जैनसंस्कृति का व्यापक रूप" पृ. 28 101. शिव पुराण, उमा संहिता, अ. 51 102. कल्याण-भक्ति अंक पृ. 90, जनवरी 1958 103. णगरस्स जह दुवारं, मुहस्स चक्खू तरुस्स जहं मूलं / तह जाण सुसम्मत्तं णाणं चरणवीरतवाणं // . -भगवती आराधना 736 115 / पुराणों में जैन धर्म