________________ 104. ज्ञानार्णव 55 105. वही, 54 * 106. नादंसणिस्स नाणं, नाणेन विणा न हुंति चरणगुणा अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं / / -उत्तराध्ययन 28, 30 107. “तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्" -तत्त्वार्थ सूत्र 1, 2 108. - तहियाणं तु भावाणं, सब्मावे उवएसणं भावेण य सद्दहंतस्स सम्मतं तं वियाहियं / / -उत्तराध्ययन -28, 15 109. या देवे देवता बुद्धिर्गुरौ च गुरुता मति धर्म च धर्मधी: शुद्धा, सम्यक्त्वमिदमुच्यते / / -रतनलाल डोशी “मोक्षमार्ग” पृ..६४ 110. शमसंवेगनिर्वेदाऽनुकम्पाऽऽस्तिक्यलक्षणा: लक्षणै: पंचभिः सम्यक् सम्यक्त्वमुपलक्ष्यते / / . . -योगशास्त्र 2, 15 111. सूत्रकृतांग 1, 8, 23-23 112. मनुस्मृति 6, 74 113. “सर्वेषामेव जन्तूनां विवेको दुर्लभः परः / " -गरुड पुराण (2), पृ. 254, 2, 8 114. लिंग पुराण (1) पृ. 89, श्लो. 8 115. नारद पुराण (1) पृ. 77, श्लो. 1, 8, 9 116. “तन्मन: समतालम्बि कार्य्यसाम्यं हि मुक्तये” ' -विष्णु पुराण (1) पृ. 355, श्लो. 31 117. लिंग पुराण (1) पृ. 103, श्लो. 26 118. स्कन्द पुराण (1) पृ. 383, अ. 36 श्लो. 1 119. स्कन्द पुराण (1) पृ. 263, श्लो. 58 120. श्रीमद्भागवत पुराण, तृतीय स्कन्ध 121. कूर्म पुराण (1) पृ. 399 122. कूर्म पुराण (1) पृ. 67 / / 123.. (क) कर्तव्योऽध्यवसाय: सदनेकान्तात्मकेषु तत्त्वेषु संशयविपर्ययानध्यवसायविविक्तमात्मरूपं यत् / / -पुरुषार्थसिद्ध्युपाय 35 (ख) द्रव्यसंग्रह 3, 42 (ग) “नाणेण जाणइ भावे" (घ) “जानाति ज्ञायतेऽनेन ज्ञप्तिमात्र वा ज्ञानम्” .. -सर्वार्थसिद्धि पृ. 2 124. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय 32-34 125. दशवैकालिक 4, 10 126. उत्तराध्ययन 29, 59 127. “अलमप्पणो होति अलं परेसि" -सूत्रकृतांग 1, 12, 19 128. ब्रह्मवैवर्त पुराण (1) पृ. 280, श्लो. 6 129. "ज्ञानमेव परब्रह्म -शिव पुराण (2) पृ. 216, श्लो. 39 130. “अस्य रोगस्य भैषज्यं ज्ञानमेव न चापरम्" -शिव पुराण 7, 1, 31, 81 131. अज्ञानमल पूर्वत्त्वान्पुरुषो मलिन: स्मृतः तत्क्षयाद्धि भवेन्मुक्तिर्नान्यथा जन्मकोटिभिः / / -लिंग पुराण (2) पृ. 38, श्लो. 60 कर्मवाद / 116