________________ कर्मणा जायते सर्व कर्मर्न गतिसाधनम् तस्मात्सर्वप्रयलेन साधुकर्म समाचरेत् / / -विष्णु पुराण (1) पृ. 206, 1, 18, 32 53. दलसुख मालवणिया -'आत्म-मीमांसा' पृ.८२ 54. Hiriyanna- "Outlines of Indian Philosophy" P. 60 .. Belvelkar - "History of Indian Philosophy" P. 82 55: दलसुख मालवणिया . -'आत्म-मीमांसा' पृ. 82 56. “पंचाध्यायी 2.35 57. वही, 2, 45 58. "खवित्ता पुवकम्माइं संजमेण तवेण य” --उत्तराध्ययन 25, 45 59. शिव पुराण 7, 1, 5, 26 60. “अट्ठ कम पगडीओ पण्णताओ तं जहा णाणावरणिज्जं, दंसणावरणिज्जं, वेयणिज्जं, मोहणिज्ज, आउयं, नाम, गोयं, अन्तराइयं" -प्रज्ञापना, पद 21, उ. 1, सू. 228 61. “विधिः स्रष्टा विधाता च दैवं कर्म पुराकृतम् ईश्वरश्चेति पर्याया विज्ञेयाः कर्मवेधसः / / " -जिनसेन–“महा पुराण" 37, 4 62. कर्ममीमांसा, पृ. 98 63. अभिधान राजेन्द्र कोष (5) पृ. 876 / 64. डॉ. सतीश चन्द्र जोशी -भविष्य पुराण' पृ. 133 65. शिव पुराण (2) पृ. 151, श्लो.. 3-7 66. डॉ. सागरमल जैन "जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार-दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन” पृ. 334 67. भगवती सूत्र, 7, 10, 121 68. स्थानांग सूत्र 9 69. सूत्रकृतांग 1, 8, 3 70. आचारांग 1, 4, 2, 1 71. दशवैकालिक 4,8 72. “अकुव्वओ पवं पत्थि" -सूत्रकृतांग 1, 15, 7 73. उपभोगेन पुण्यानामपुण्यानां च पार्थिव कर्तव्यमिति नित्यानामकरणात् तथा / / असंचयादपूर्वस्य क्षयात् पूर्वार्जितस्य च कर्मणो ऽबंधमाप्नोति शरीरं च पुन: पुनः / / कर्मणा मोक्षमाप्नोति वैपरीत्येन तस्य तु // -मार्कण्डेय पुराण 36, 6-8 74. विष्णु पुराण (2) पृ. 397, श्लो. 28 75. पद्म पुराण (२),पृ. 404, श्लो. 87-88 76. श्री मधुकर मुनिजी “कर्ममीमांसा” पृ. 105 तथा कर्मग्रन्थ भाग 1, भूमिका पृ. 57 77. नथमल टॉटिया -'स्टडीज इन जैन फिलोसोफी' पृ. 260 कर्मवाद / 114