________________ को एक कुम्हार की भांति नियत कर दिया है, विष्णु को अवतार धारण कर महान् संकट में डाल दिया है, रूद्र को भिक्षुक बना दिया है, तथा जिस कर्मवश सूर्य नित्यप्रति गगन में भ्रमण करते हैं, उस परम प्रबल कर्म के लिए हमारा बारम्बार नमस्कार है। यह कर्मों की रेखा, विधि के वश से अच्छों-अच्छों को भी भ्रमित कर देती है। कर्मों का फल भोगे बिना उनका सैंकड़ों कल्पों में भी क्षय नहीं होता है। अपने किये हुए शुभ या अशुभ कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। - कर्म के मुख्यतः दो प्रकार शुभ-अशुभ, पुण्य-पाप, कुशल-अकुशल, धर्म-अधर्म सभी को मान्य हैं। पुण्यकर्म से अनुकूलताएँ प्राप्त होती हैं. जबकि पापकर्म से प्रतिकूलताएँ मिलती हैं। जैनागमों में वर्णित पुण्य-प्रकृतियों एवं पाप-प्रकृतियों में इन्हीं शुभाशुभ परिणामों का वर्णन है। बुद्धि, उत्तम गति, आयु-गोत्र, शरीर आदि पुण्य प्रकृतियाँ हैं जबकि अज्ञान, मिथ्यात्व, अशुभ गति, आयु, शारीरिक संरचना आदि पाप के परिणाम हैं। पुण्य तथा पाप के परिणामों को पुराणों में भी बताया गया है। कर्म के अनुसार ही चिरकाल तक जीवित रहने वाला तथा कर्म के प्रभाव से क्षण भर की आयु वाला होता है। कर्म से करोड़ों कल्पों की आयु हो जाती है और कर्म से ही क्षीणायु वाला होता है। अकरणीय कर्म से जीव रोगी होता है और शुभकर्म से वह रोग रहित रहता है। कुत्सित कर्म से अंधे और अंगहीन होते हैं।२१ शुभ कर्म से स्वर्गादि की प्राप्ति होती है तथा अशुभ कर्मों से नरकों में भ्रमण करते हैं।२२ कर्म का कर्तृत्व तथा भोक्तृत्व जैन दर्शन एवं वैदिक दर्शन में कर्म के कर्तृत्व के विषय में भिन्न विचारधाराएँ हैं। जैन दर्शन के अनुसार-जीव को अपने किये कर्मों का फल कोई ईश्वर नाम की विशिष्ट चैतन्यशक्ति नहीं देती। कर्मों में स्वयं में ही वह शक्ति है जिसके कारण जीव को प्राकृतिक रूप से उसके कर्मों का फल मिलता रहता है, इसी सिद्धान्त की पुष्टि गीता में भी हुई है। 23 जगत के जीवों का कर्तृत्व या उसके कर्मों का सर्जन प्रभु (ईश्वर) नहीं करता, न ही उनसे कर्मफल का संयोग कराता है / यह सब स्वभावतः चलता रहता है। इसके विपरीत ईश्वर कर्तृत्ववादी दर्शनों की धारणा है कि जीवों के शुभाशुभ कर्मों का फल देना ईश्वर के अधीन है, उनके द्वारा कई युक्तियाँ रखी गई, जिनका खण्डन भी जैन दर्शन में किया गया है। ईश्वर कर्तृत्ववादियों के मुख्य तर्क हैं—२४. 1. पुरुषकृत कर्म बहुधा निष्फल होते हैं। अतः कर्मफल का कारण ईश्वर है। कर्मवाद / 88