________________ 53. श्री श्रीमल्लजी महाराज “सम्यग्दृष्टि, सम्यग्दर्शन और उसकी साधना" नामक लेख से तिलोक शताब्दी अभिनन्दन ग्रन्थ . 54. किमत्र बहुनोक्तेन पुरुषो देहतः पृथक् अपृथग्ये तु पश्यन्ति ह्यसम्यक् तेषु दर्शनम् / / -शिव पुराण 7.1.5.50 55. गरुड़ पुराण (2) पृ. 393, श्लो. 31 56. वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यनानि गृह्णाति नवानि देही // -वहीं, पृ. 306, श्लो. 42 57. भागवत पुराण ११वाँ स्कन्द 58. वही, १२वाँ स्कन्द 59. शिव पुराण विसं. १६वा अध्याय 60. जितेन्द्रचन्द्र भारतीय –'शिवपुराण में शैवदर्शन तत्त्व' पू. 155 स्थानांग 57, 1.1 62. विपयारो सो अप्पा, परमंतर बाहिरो हु देहीणं तत्व परो झाइज्बइ, अंतोवारण चइवि बहिरप्पा॥ -'श्रमण' जनवरी-मार्च 93, पृ. 4 63. चरणानुयोग प्रस्तावना साहंकारस्तथा जीवस्तन्मुक्त: शंकर स्वयम् जीवस्तुच्छ. कर्मभोगी निर्लिप्त: शंकरो महान् / / यथैकं च सुवर्णादिमिलितं रखतादिना अल्पमूल्यं प्रजायेत तथा जीवोऽप्यर्हयुत:॥ -शिव पुराण (2) पृ. 144, श्लो. 23 65. “बद्धेष्वेव पुनः ज्ञानेश्वर्यादि वैषम्यं भजन्ते सोत्तरचिराः // " शिव पुराण 7.1.3.64 (शिव महापुराण की दार्शनिक तथा धार्मिक समालोचना) 66. सव्वे सयकम्मकप्पिया, अवियत्तेण दुहेण पाणिणे हिण्डन्ति भयाउला सढा, जाइजरामरणेहिऽमिडैया // - -सूत्रकृतांग 1.2.3.18 67. ब्रह्मवैवर्तपुराण (1) पृ. 429, श्लो. 20-21 68. xxxxxx 69. (अ) बनतत्वप्रकाश पृ. 410 () डॉ. हरीन्द्रभूषण जैन “जैन अंगशास्त्र के अनुसार मानव व्यक्तित्व का विकास" पृ. 138-140 (स) मुनि श्री मिश्रीमलजी म -द्वितीय कर्मग्रन्थ पृ. 33-42 70. योगवाशिष्ठ उत्पत्ति प्रकरण, . सर्ग 118, श्लो. 5-15 71. द्वितीय “कर्मग्रन्थ पृ. 27-29 72. “पातंजलयोग प्रदीप" पृ. 151-152 श्री स्वामी ओमानन्द तीर्थ 73. जितेन्द्रचन्द्र भारतीय ___-'शिव पुराण में शैव दर्शन तत्त्व' पृ. 153 74. 'ब्रह्माण्ड पुराण' पृ. 152-153 आमामल- किम/४