________________ जिसकी कवीन्द्र रवीन्द्र ने बड़ी ही रोमांचक और महनीय शैली में अभिवन्दना की है-“हेथाय आर्य, हेथा अनार्य हेथाय द्राविड चीन_शक हुन दल पाठान मोगल एक देहे हलो लीन” इस प्रकार की सांस्कृतिक सरिताओं को, जो समय-समय पर आकर इसमें मिलती रही हैं, आत्मसात् करते कितनी सहस्राब्दियाँ बीत गई हैं, कौन जानता है? हमारा सांस्कृतिक इतिहास भारत की चिरंतन संस्कृति सहस्राब्दियों से एक अजस्र और अविच्छिन्न किन्तु वैविध्यपूर्ण एवं संमिश्र महाधारा के रूप में इस देश में प्रवाहित हो रही है। इसका धर्म, दर्शन, साहित्य तथा अन्य ज्ञान शाखाओं का वाङ्मय अनन्त है और इसकां इतिहास भी विराट एवं अपरिमेय है। इस विराट समुद्र की थाह पाने का प्रयत्न समय-समय पर मनीषी करते रहते हैं। आज के जिज्ञासुओं को भारतीय संस्कृति का इतिहास बतलाने के लिए जितने प्रयत्न हुए हैं, उन्हें प्रारंभिक प्रयास कहना ही उचित होगा। उनके फलस्वरूप हमारी सांस्कृतिक धारा का एक सामान्य आकलन पिछली सदी से अवश्य सामने आया है। पाश्चात्य विद्वानों ने भी इस दिशा में बहुत श्रम किया है। उन्हीं की सरणि पर चलते हुए आज हम छात्रों को पढ़ाते हैं कि किस प्रकार इस भू-भाग में ईसा से कुछ हजार वर्ष पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता पनपी, किस प्रकार उनकी नगर-संस्कृति बहुत विकसित थी, किस प्रकार आर्य भारत आए और उन्होंने कृषि प्रधान संस्कृति का प्रारम्भ किया, वैदिक कर्मकांड के साथ-साथ किस प्रकार उपनिषदों का दर्शन विकसित हुआ और किस प्रकार वैदिक कर्मकांड की रूढ़िवादिता के विरुद्ध प्रतिक्रिया-स्वरूप जैन और बौद्ध दर्शनों का उदय हुआ। किस प्रकार शैव, वैष्णव, शाक्त. आदि आचार पनपे और किस प्रकार वेदांत की विभिन्न शाखाओं का चिन्तन प्रारम्भ हुआ। किस प्रकार शंकर, रामानुज, वल्लभ आदि की दर्शन शाखाएँ और उनके साथ भक्ति मार्ग की धाराएँ फूट निकलीं। धार्मिक जड़वाद के विरोध में किस प्रकार कबीर, नानक आदि संतों ने आत्मा और परमात्मा का तात्विक चिन्तन फैलाया। किस प्रकार विवेकानन्द, दयानन्द आदि ने भी इसी सांस्कृतिक परंपरा को नये स्वर दिये और किस प्रकार उसमें भारतीयता की भावना आ जुड़ी। इस इतिहास के ताने-बाने का गहन विश्लेषण पूरा नहीं हुआ है। इस सांस्कृतिक इतिहास की निरन्तर प्रवहमान धारा में जो विभिन्न अन्तर्धाराएँ हैं, उन सबका अपना विशिष्ट महत्त्व है और उनका हमारी समूची सांस्कृतिक निधि के निर्माण में जो योगदान रहा है वह अत्यन्त बहुमूल्य है। आज हम इन संस्कृतियों