________________ मूल्य नहीं। विज्ञान प्रकाश है, किंतु अध्यात्म की आंख के बिना उसकी कोई सार्थकता नहीं है। आचार्य भद्रबाहु ने कहा था - अंधे व्यक्ति के सामने करोड़ों दीपक जलाने से क्या लाभ? जिसकी आंख खुली हो उसके लिए एक ही दीपक पर्याप्त है। आज के मनुष्य की भी यही स्थिति है। वह विज्ञान और तकनीक के सहारे बाह्य-जगत् में चकाचौंध विद्युत फैला रहा है किंतु अपने अंतर्चक्षु का उन्मीलन नहीं कर पा रहा है। प्रकाश की चकाचौंध में हम अपने को ही नहीं देख पा रहे हैं। यह सत्य है कि प्रकाश आवश्यक है, किंतु आंखें खोले बिना उसका कोई मूल्य नहीं है। विज्ञान ने मनुष्य को शक्ति दी है। आज वह ध्वनि से भी अधिक तीव्र गति से यात्रा कर सकता है। किंतु स्मरण रहे विज्ञान जीवन के लक्ष्य का निर्धारण नहीं कर सकता। लक्ष्य का निर्धारण तो अध्यात्म ही कर सकता है। विज्ञान साधन देता है, लेकिन उनका उपयोग किस दिशा में करना होगा यह बतलाना अध्यात्म का कार्य है। पूज्य विनोबा जी के शब्दों में विज्ञान में दोहरी शक्ति होती है वह विनाश-शक्ति और दूसरी विकास-शक्ति। वह सेवा भी कर सकता है और संहार भी। अग्नि नारायण की खोज हुई तो उससे रसोई भी बनाई जा सकती है और उससे आग भी लगाई जा सकती है। अग्नि का प्रयोग घर फूंकने में करना या चूल्हा जलाने में यह अक्ल विज्ञान में नहीं है। अक्ल तो आत्मज्ञान में है। आगे वे कहते हैं- आत्मज्ञान है- आंख और विज्ञान है-पांवा अगर मानव को आत्मज्ञान नहीं है तो वह अंधा है। कहां चला जाएगा कुछ पता नही। दूसरे शब्दों में कहें तो अध्यात्म देखता तो है, लेकिन चल नहीं सकता। उसमें लक्ष्य बोध तो है, किंतु गति की शक्ति नहीं। विज्ञान में शक्ति तो है किंतु गति की शक्ति नहीं। विज्ञान में शक्ति तो है किंतु आंख नहीं है, लक्ष्य का बोध नहीं है। जिस प्रकार अंधे और लंगड़े दोनों ही परस्पर सहयोग के अभाव में दावानल में जल मरते हैं, ठीक इसी प्रकार यदि आज विज्ञान और अध्यात्म परस्पर एक दूसरे के पूरक नहीं होंगे तो मानवता अपने ही द्वारा लगाई गई विस्फोटक शस्त्रों की इस आग में जल मरेगी। बिना विज्ञान के संसार में सुख नहीं आ सकता और बिना अध्यात्म के शांति नहीं आ सकती। मानव समाज की सुख (Pleasure) और शांति (Peace) के लिए दोनों का परस्पर होना आवश्यक है। वैज्ञानिक शक्तियों का उपयोग मानव-कल्याण में हो या मानव-संहार में, इस बात का निर्धारण विज्ञान से नहीं, आत्मज्ञान या अध्यात्म से करना होगा। अणु शक्ति का उपयोग मानव के संहार में हो या मानव के कल्याण में, यह निर्णय करने का अधिकार उन वैज्ञानिकों को भी नहीं है, जो सत्ता, स्वार्थ और समृद्धि के पीछे अंधे राजनेताओं के दास हैं। यह निर्णय तो मानवीय विवेक सम्पन्न निःस्पृह (164)