________________ साधकों को ही करना होगा। यह सत्य है कि विज्ञान के सहयोग से तकनीक का विकास हुआ है और उसने मानव के भौतिक दुःखों को बहुत कुछ कम कर दिया है, किंतु दूसरी ओर उसने मारक शक्ति के विकास के द्वारा भय या संत्रास की स्थिति उत्पन्न कर मानव की शांति को भी छीन लिया है। आज मनुष्य जाति भयभीत और संत्रस्त है। आज वह विस्फोटक अस्त्रों के ज्वालामुखी पर खड़ी है, जो कब विस्फोट कर हमारे अस्तित्व को निगल लेगी, यह कहना कठिन है। आज हमारे पास जिन संहारक अस्त्रों का संग्रह है, वे पृथ्वी के सम्पूर्ण जीवन को अनेक बार समाप्त कर सकते हैं। पूज्य विनोबा जी लिखते हैं- 'जो विज्ञान एक ओर क्लोरोफार्म की खोज करता है जिससे करुणा का कार्य होता है, वही विज्ञान अणु अस्त्रों की खोज करता है जिससे भयंकर संहार होता है। एक बाजू सिपाही को जख्मी करता है दूसरा बाजू उसको दुरुस्त करता है, ऐसा गोरखधंधा आज विज्ञान की मदद से चल रहा है। इस हालत में विज्ञान का सारा कार्य उसको मिलने वाले मार्गदर्शन पर आधारित है। उसे जैसा मार्गदर्शन मिलेगा, वह वैसा कार्य करेंगा।' __यदि विज्ञान पर सत्ता के आकांक्षियों का, राजनीतिज्ञों का और अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने वालों का अधिकार होगा तो वह मनुष्य-जाति का संहारक ही बनेगा। किंतु इसके विपरीत यदि विज्ञान पर मानव-मंगल के द्रष्टा अनासक्त ऋषियों-महर्षियों का अधिकार होगा, तो वह मानव के विकास में सहायक होगा। आज हम विज्ञान के माध्यम से तकनीकी प्रगति की ऊंचाई तक पहुंच चुके हैं जहां से लौटना भी सम्भव नहीं है। आज मनुष्य उस दोराहे पर खड़ा है, जहां पर उसे हिंसा और अहिंसा दो राहों में से किसी एक को चुनना है। आज उसे यह समझना है कि वह विज्ञान के साथ किसको जोड़ना चाहता है, हिंसा को या अहिंसा को। आज उसके सामने दोनों विकल्प प्रस्तुत हैं। विज्ञान+अहिंसा = विनाशा जब विज्ञान अहिंसा के साथ जुड़ेगा तो वह समृद्धि और शांति लाएगा, किंतु जब उसका गठबंधन हिंसा से होगा तो संहारक होगा और अपने ही हाथों अपना विनाश करेगा। _आज विज्ञान के सहारे मनुष्य ने इतना पाशविक बल संगृहीत कर लिया है कि वह उसका रक्षक न होकर कहीं भक्षक न बन जाए, यह उसे सोचना है। महावीर ने स्पष्ट रूप से कहा था - ‘अत्थि सत्थेन परंपरं, नत्थि असत्थेन परंपर।' शस्त्र एक से बढ़कर एक हो सकता है किंतु अहिंसा से बढ़कर अन्य कुछ नहीं हो सकता। आज सम्पूर्ण मानव समाज को यह निर्णय लेना होगा कि वे वैज्ञानिक शक्तियों का प्रयोग (165)