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________________ के सभी प्राणी जीवन के इच्छुक हैं और मृत्यु से भयभीत हैं, जिस प्रकार मैं सुख की प्राप्ति चाहता हूं और दुःख से बचना चाहता हूं उसी प्रकार विश्व के सभी प्राणी सुख के इच्छुक हैं और दुःख से दूर रहना चाहते हैं।' यही वह दृष्टि है जिस पर अहिंसा का, धर्म का और नैतिकता का विकास होता है। ___ जब तक दूसरों के प्रति हमारे मन में समभाव अर्थात् समानता का भाव, जागृत नहीं होता, अनुकम्पा नहीं आती अर्थात् उनकी पीड़ा हमारी पीड़ा नहीं बनती तब तक सम्यक् - दर्शन का उदय भी नहीं होता, जीवन में धर्म का अवतरण नहीं होता। असर लखनवी का यह निम्न शेर इस सम्बंध में कितना मौजूं है -.. ईमां गलत उसूल गलत, उद्दुआ गलत। इंसां की दिलदिही, अगर इंसां न कर सके।। अध्यात्म और विज्ञान औपनिषदिक ऋषिगण, बुद्ध और महावीर भारतीय अध्यात्म परम्परा के उन्नायक रहे हैं। उनके आध्यात्मिक चिंतन ने भारतीय मानस को आत्मतोष प्रदान किया है। किंतु आज हम विज्ञान के युग में जीवनं जी रहे हैं। वैज्ञानिक उपलब्धियां भी आज हमें उद्वेलित कर रही हैं। आज का मनुष्य दो तलों पर जीवन जी रहा है। यदि विज्ञान को नकारता है तो जीवन की सुख-सुविधा और समृद्धि के खोने का खतरा है। दूसरी ओर अध्यात्म को नकारने पर आत्म-शांति से वंचित होता है। आज आवश्यकता है इन ऋषि-महर्षियों द्वारा प्रतिस्थापित आध्यात्मिक मूल्यों और आधुनिक विज्ञान की उपलब्धियों के समन्वय की। निश्चय ही विज्ञान और अध्यात्म' की चर्चा आज प्रासंगिक सामान्यतया आज विज्ञान और अध्यात्म को परस्पर विरोधी अवधारणाओं के रूप में देखा जाता है। जहां अध्यात्म को धर्मवाद और पारलौकिकता के साथ जोड़ा जाता है, वहीं विज्ञान और भौतिकता और इहलौकिकता के साथ जोड़ा जाता है। आज दोनों में विरोध माना जाता है, लेकिन यह अवधारणा भी भ्रांत है। प्राचीन युग में तो विज्ञान और अध्यात्म ये शब्द भी परस्पर भिन्न अर्थ के बोधक नहीं थे। महावीर ने आचारांगसूत्र में कहा है कि जो आत्मा है वही विज्ञाता है और जो विज्ञाता है वही आत्मा है।' यहां आत्मज्ञान और विज्ञान दोनों एक ही हैं। वस्तुतः विज्ञान शब्द विज्ञान से बना है, 'वि' उपसर्ग विशिष्टता का द्योतक है अर्थात् विशिष्ट ज्ञान ही विज्ञान है। आज (162)
SR No.004424
Book TitleBharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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