________________ मन वही पुराना पापी रहा, बरसों में नमाजी न हो सका। आज धर्म के नाम पर जो भी किया जाता है उसका सम्बंध परलोक से जोड़ा जाता है। आज धर्म उधार सौदा बन गया है और इसीलिए आज धर्म से आस्था उठती जा रही है। किंतु याद रखिए वास्तविक धर्म उधार सौदा नहीं, नकद सौदा है। उसका फ ल तत्काल है। भगवान् बुद्ध से किसी ने पूछा कि धर्म का फल इस लोक में मिलता है या परलोक में? उन्होंने कहा था - धर्म का फल तो उसी समय मिलता है। जैसे ही मोह टूटता है, तृष्णा छूटती है, चाह और चिंता कम हो जाती है, मन शांति और आनंद से भर जाता है, यही तो धर्म का फल है। हम यदि अपनी अंतरात्मा से पूछे कि हम क्या चाहते हैं? उत्तर स्पष्ट है हमें सुख चाहिए, शांति चाहिए, समाधि या निराकुलता चाहिए और जो कुछ आपकी अंतरात्मा आपसे मांगती है वही तो आपका स्वभाव है, आपका धर्म है। जहां मोह होगा, राग होगा, तृष्णा होगी, आसक्ति होगी, वहां चाह बढ़ेगी, जहां चाह बढ़ेगी, वहां चिंता बढ़ेगी और जहां चिंता होगी वहां मानसिक असमाधि या तनाव होगा और जहां मानसिक तनाव या विक्षोभ है वहीं तो दुःख है, पीड़ा है। जिस दुःख को मिटाने की हमारी ललक है उसकी जड़ें हमारे अंदर हैं, किंतु दुर्भाग्य यही है कि हम उसे बाहर के भौतिक साधनों से मिटाने का प्रयास करते रहे हैं। यह तो ठीक वैसा ही हुआ जैसे घाव कहीं और हो और मलहम कहीं और लगाएं। अपरिग्रहवृत्त या अनासक्ति को जो धर्म कहा गया, उसका आधार यही है कि वह ठीक उस जड़ पर प्रहार करता है, जहां से दुःख की विषवेल फूटती है, आकुलता पैदा होती है। वह धर्म इसीलिए है कि वह हमें आकुलता से निराकुलता की दिशा में, विभाव से स्वभाव की दिशा में ले जाती है। किसी कवि ने कहा है - चाह गई, चिंता मिटी मनुआ भया बेपरवाह। . जिसको कुछ न चाहिए, वह शहंशाहों का शहंशाह।। निराकुलता एवं आकुलता ही धर्म और अधर्म की सीधी और साफ कसौटी है। जहां आकुलता है, तनाव है, असमाधि है, वहां अधर्म है और जहां निराकुलता है, शांति है, समाधि है, वहां धर्म है। जिन बातों से व्यक्ति में अथवा उनके सामाजिक परिवेश में आकुलता बढ़ती है, तनाव पैदा होता है, अशांति बढ़ती है, विषमता बढ़ती है, वे सब बातें अधर्म हैं, पाप हैं। इसके विपरीत जिन बातों से व्यक्ति में और उसके सामाजिक परिवेश में निराकुलता आए, शांति आए, तनाव घटे, विषमता समाप्त हो, वे सब धर्म हैं। धार्मिकता के आदर्श के रूप में जिस वीतराग, वीततृष्णा और अनासक्त (150) बात