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________________ प्रश्नव्याकरणसूत्र में अहिंसा के निर्वाण, समाधि, शांति, विमुक्ति, क्षान्ति (क्षमाभाव), शिव (कल्याणकारक), पवित्र, कैवल्यस्थान आदि 60 पर्यायवाची नाम दिए हैं। संक्षेप में कहें तो अहिंसा समस्त सद्गुणों की प्रतिनिधि है। सामान्य रूप में अहिंसा का अर्थ है- 'जीवन जहां भी है और जिस रूप में भी है उसका सम्मान करो'। इसीलिए हिन्दूग्रंथ महाभारत में अहिंसा को परमधर्म कहा है। यह मानो कि जिस प्रकार तुम्हें जीवन जीने का अधिकार है उसी प्रकार संसार के प्रत्येक प्राणी को जीवन जीने का अधिकार है। अतः जीवन के जो,जो भी रूप हैं, उन्हें पीड़ा या कष्ट देने, त्रास देने, उन्हें विद्रूपित करने, उन्हें प्रदूषित करने या उन्हें नष्ट करने का हमें कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि सभी प्राणी जीना चाहते हैं, जीवन सभी को प्रिय है, कोई भी मरना नहीं चाहता है, सभी को सुख प्रिय है, दुःख अप्रिय है, अतः किसी की हिंसा करना, दुःखी करना या त्रास देना पाप है, अनैतिक या अनुचित है। अहिंसा आर्हत् प्रवचन का सार है उसे शुद्ध और शाश्वत धर्म कहा गया है। क्योंकि संसार के प्रत्येक प्राणी में जिजीविषा की प्रधानता है, सभी अस्तित्व और सुख के आकांक्षी हैं- अहिंसा का आधार यही मनोवैज्ञानिक सत्य है। अहिंसा का अधिष्ठान भय नहीं है, जैसा कि पाश्चात्य दार्शनिक मैकेन्जी ने अपने ग्रंथ 'हिन्दू एथिक्स' में मान लिया है, क्योंकि भय' तो हिंसा का मूल कारण है। पारस्परिक भय और तदजन्य अविश्वास से ही हिंसा का जन्म होता है। आज विश्व में हिंसक शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा और देशों के मध्य जो शक्ति-युद्ध का वातावरण बना हुआ है, उसका कारण पारस्परिक अविश्वास और भय की वृत्ति ही है, अतः भारतीय जीवनदर्शन का मूल सिद्धांत है- परस्पर अभय का विकास करो, क्योंकि पारस्परिक अभय और विश्वास से ही अहिंसा का विकास होगा। अतः अहिंसा का अधिष्ठान या मनोवैज्ञानिक आधार आत्मतुल्यता, पर-पीड़ा की आत्मवत् अनुभूति और अभयनिष्ठा ही है। दूसरे प्राणियों के जीवित रहने और जीवन जीने के साधनों पर सभी के समान अधिकार की तार्किक स्वीकृति से ही अहिंसा का विकास सम्भव है। ‘आत्मवत् सर्व भूतेषु' की जीवन-दृष्टि ही वह तार्किक आधार है जो अहिंसा की सम्पोषक है। इस प्रकार अहिंसा की प्रतिष्ठा के मूलाधार हैं - जीवन के प्रति सम्मान, अभय की प्रतिष्ठा, समत्ववृत्ति और आत्मतुला के तार्किक आधार पर दूसरों की पीड़ा को आत्मवत् समझना। तीसरे सामान्यतया यह मान लिया जाता है कि हिंसा नहीं करना, किसी को मारना या कष्ट नहीं देना ही अहिंसा है- यह अहिंसा की आधी-अधूरी अवधारणा है। ( 10 )
SR No.004424
Book TitleBharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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