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________________ एते पुव्वं महापुरिसा आहिता इह संभता। भोच्चा बीओदगं सिद्ध इति मेयमणुस्सुअ॥४॥ - सूत्रकृतांग, 1/3/4/1-4 10. वही, 2/6/1-3, 7, 9 11. भगवती शतक, 15. 12. उपासकदशांग, अध्याय 6 एवं 7. 13. (अ). सुत्तनिपात, 32 सभियसुत्त (ब). दीघनिकाय, सामञफलसूत्र। 14. ये ते समणब्राह्मणा संगिनो गणिनो गणाचरिया आता यसस्सिनो तित्थकरा साधु सम्मता, बहुजनस्स, सेव्यथीदं पूरणो कस्सपो, मक्खलिगोसालो, अजितो के सकम्बली, पकुधो कच्चायनो, संजयो वेलटिठपुत्तो, निगण्ठो नातपुत्तो। - सुत्तनिपात, ३२-सभियसुत्त। 15. (अ). भरतसिंह उपाध्याय, पालि साहित्य का इतिहास, पृष्ठ 102-104 (B). It is...... the oldest of the pectic books of the Buddhist scriptures, Introduction, Page-2, -- Sutta-Nipata (Siter Vajira). 16. उभो नारद पब्बता। - सुत्तनिपात 32, सभियसुत्त, 34 17. . असितो इसि अद्दस दिवाविहारे। - सुत्तनिपात 37, नालकसुत्त 1 18. जिण्णेऽहमस्मि अबलो वीतवण्णे (इच्चायस्मा पिंगियो) - सुत्तनिपात 71, पिंगियमाणवपुच्छा. 19. सुत्तनिपात, 32, सभियसुत्त 20.. वही 21. वही 22. थेरगाथा 36, डिक्शनरी ऑफ पाली प्रापर नेम्स वाल्यूम प्रथम, पृ. 631, वाल्यूम द्वितीय, पृ. 15. 23. (अ). 'आता छेत्तं, तवो बीयं, संजमो जुअ णंगलं। झाणं फालो निसित्तो य, संवरो य बीयं दढं // 8 // (95) झा
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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