________________ भी मतैक्य नहीं है। ‘सज्झायपट्टवणाविही' पृ. 45 पर 11 अंग, 12 उपांग, 6 छेद, 4 मूल एवं 2 चूलिकासूत्र के घटाने पर लगभग 31 प्रकीर्णकों के नाम मिलते हैं, जबकि पृ. 57-58 पर ऋषिभाषित सहित 15 प्रकीर्णकों का उल्लेख है।) . 6. (अ). कालियसुर्य च इसिभासियाई तइओ य सूरपण्णत्ती। सव्वो य दिट्ठिवाओ चउत्थओ होई अणुओगो॥ 124 // (मू.भा.) . तथा ऋषिभाषितानि-उत्तराध्ययनादीनि, 'तृतीयश्च' कालानुयोगः - आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति, पृ. 206 (ब). आवस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झमायारे। सूयगडे निज्जुतिं वुच्छामि तहा दसाणं च // कप्पस्स य निज्जुतिं ववहारस्सेव परमणिउणस्स। सूरिअपण्णत्तीए वुच्छं इसिभासिआणं च // . - आवश्यकनियुक्ति, 84-85. पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पन्नता, तंजहा-उवमा, संखा, इसिभासियाई, आयरियभासिताई, महावीरभासिताइं, खोमपसिणाईं, कोमलपसणाई, अद्दागपसिणाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई। ठाणंगसुवे, दसमं अझभयणं दसट्टाणं। (महावीर जैन विद्यालय संस्करण, पृ. 311) चोत्तालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुताभासिया पण्णत्ता। -समवायंगसुत्त-४४ आहेसु महापुरिसा पुव्विं तत्त तवोधणा। उदाएण सिद्धिमावन्ना तत्थ मंदो विसीयति // 1 // अभुंजिया नमी विदेही, रामपुत्ते य भुंजिआ। बाहुए उदगं भोच्चा तहा नारायणे रिसी // 2 // असिले देविले चेव दीवायण महारिसी। पारासरे दगं भोच्चा बीयाणि हरियाणि यं // 3 // 7.