________________ नन्दिसूत्र 84 (महावीर विद्यालय, बम्बई, 1968) (ब) नमो तेर्सि खमासमणाणं जेहिं इमं वाइअंग बाहिरं कालिअं भगवंतं तं जहा-१ उत्तरायणाई 2 दसाओ 3 कप्पो 4 ववहारो 5 इसिभासिआई 6 निसीहं 7 महानिसीह--- (ज्ञातव्य है कि पक्खियसुत्त में अंगबाह्य ग्रंथों की सूची में 28 उत्कालिक और 36 कालिक-कुल 64 ग्रंथों के नाम हैं। इसमें 6 आवश्यक और 12 अंग मिलाने से कुल 82 की संख्या होती है। लगभग यही सूची विधिमार्गप्रपा में भी उपलब्ध होती है।) -पक्खियसुत्त, पृ.७९, देवचंदलालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड, सिरीज क्रमांक 99 अंगबाह्यमनेकविधम्। तद्यथा-सामायिकं, चतुर्विशतिस्तवः, वन्दनं, प्रतिक्रमणं, कायव्युत्सर्गः, प्रत्याख्यानं, दशवैकालिकं, उत्तराध्यायाः, दशाः, कल्पव्यवहारौ, निशीथं ऋषिभाषितानीत्येवमादि। - तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (स्वोपज्ञभाष्य) 1/20, (देवचंदलालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड) क्रम-संख्या 67. 3. तथा ऋषिभाषितानि उत्तराध्ययनादीनि------। _ - आवश्यकंनियुक्ति हारिभद्रीयवृत्ति, पृ. 206. ऋषिभाषितानां च देवेन्द्रस्तवादीनां नियुक्तिं --- / - वही, पृ. 41 इसिभासियाई पणयालीसं अज्झयणाई कालियाई, तेसु दिण 45 निविएहिं अणागाढजोगो। अण्णे भणंति उत्तरज्झयणेसु चेव एयाइं अतंभवंति। -विधिमार्गप्रपा पृ.५८ देविंदत्थयमाई पइण्णगा हों ति इगिगनिविएण। इसिभासियअज्झयणा आयंबलिकालतिसज्झा // 61 // केसिं चि मए अंतभवंति एयाइ उत्तरज्झयणे। पणयालीस दिणेहिं केसि वि जोगो अण्णगाढो // 62 // .. - विधिमार्गप्रपा, पृ. 62 (ज्ञातव्य है कि प्रकीर्णकों की संख्या के सम्बंध में विधिमार्गप्रपा में