________________ का पिता कहा गया है, अतः इस सम्भावना को भी पूरी तरह निरस्त नहीं किया जा सकता है कि यम कोई ऋषि रहे हों। यद्यपि उपनिषदों में भी यम को लोकपाल के रूप में भी चित्रित किया गया है, किंतु इतना ही निश्चित है कि ये एक उपदेष्टा हैं। यम और नचिकेता का संवाद औपनिषदिक परम्परा में सुप्रसिद्ध ही है। वरुण और वैश्रमण को भी वैदिक परम्परा में मंत्रोपदेष्टा के रूप में स्वीकार किया गया है। यह सम्भव है कि सोम, यम, वरुण, वैश्रमण इस ग्रंथ के रचनाकाल तक एक उपदेष्टा के रूप में लोक परम्परा में मान्य रहे हों और इसी आधार पर इनके उपदेशों का संकलन ऋषिभाषित में कर लिया गया है। उपर्युक्त चर्चा के आधार पर निष्कर्ष के रूप में हम यह अवश्य कह सकते हैं कि ऋषिभाषित के ऋषियों में उपर्युक्त चार-पांच नामों को छोड़कर शेष सभी प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक काल के यथार्थ व्यक्ति हैं, काल्पनिक चरित्र नहीं हैं। निष्कर्ष रूप में हम इतना ही कहना चाहेंगे कि ऋषिभाषित न केवल जैन परम्परा की, अपितु समग्र भारतीय परम्परा की एक अमूल्य निधि है और इसमें भारतीय चेतना की धार्मिक उदारता अपने यथार्थ रूप में प्रतिबिम्बित होती है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह हमें अधिकांश ज्ञात और कुछ अज्ञात ऋषियों के सम्बंध में और उनके उपदेशों के सम्बंध में महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक सूचनाएं देता है। जैनाचार्यों ने इस निधि को सुरक्षित रखकर भारतीय इतिहास एवं संस्कृति की बहुमूल्य सेवा की है। वस्तुतः, यह ग्रंथ ईसा पूर्व दसवीं शती से लेकर ईसा पूर्व छठवीं शती तक के अनेक भारतीय ऋषियों की ऐतिहासिक सत्ता का निर्विवाद प्रमाण है। 1. (अ) से किं कालियं ? कालियं अणेगविहं पण्णत्तं। तं जहा उत्तरज्झयणाई 1 दसाओ 2 कप्पो 3 ववहारो 4 णिसीहं 5 महानिसीहं 6 इसिभासियाई 7 जंबुद्दीवपण्णत्ती 8 दीवसागरपण्णत्ती