SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन परम्परा से सम्बंधित नहीं हैं। उनके कुछ नामों के आगे लगे हुए ब्राह्मण, परिव्राजक आदि शब्द ही उनका जैन परम्परा से भिन्न होना सूचित करते हैं। दूसरे देव नारद, असितदेवल, अंगिरस, भारद्वाज, याज्ञवल्क्य, बाहुक, विदुर, वारिषेणवृष्ण, द्वैपायन, आरुणि, उद्दालक, नारायण ऐसे नाम हैं, जो वैदिक परम्परा में सुप्रसिद्ध रहे हैं और आज भी उनके उपदेश उपनिषदों, महाभारत एवं पुराणों में सुरक्षित हैं, इनमें से देव नारद, असितदेवल, अंगिरस भारद्वाज, द्वैपायन के उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त सूत्रकृतांग, अंतकृद्दशा, औपपातिक आदि जैन-ग्रंथों में तथा बौद्ध त्रिपिटिक साहित्य में भी मिलते हैं। इसी प्रकार वज्जीयपुत्र, महाकश्यप और सारिपुत्र बौद्ध परम्परा के सुप्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं और उनका उल्लेख त्रिपिटक साहित्य में उपलब्ध है। मंखलिपुत्र, रामपुत्त, अम्बड (अम्बष्ट), संजय (वेलट्ठिपुत्र) आदि ऐसे नाम हैं, जो स्वतंत्र श्रमण परम्पराओं से सम्बंधित हैं और इनके इस रूप में उल्लेख जैन और बौद्ध परम्पराओं में हमें स्पष्ट रूप से मिलते हैं, उन पर विस्तृत चर्चा प्रो.सी.एस. उपासक ने अपने लेख इसिभासियाई एण्ड पालि बुद्धिस्ट टेक्स्ट्स : ए स्टडी' में की है। यह लेख पं. दलसुखभाई अभिनन्दन ग्रंथ में प्रकाशित हुआ है। पार्श्व और वर्द्धमान जैन परम्परा के तेईसवें और चौबीसवें तीर्थंकर के रूप में सुस्पष्ट रूप से मान्य हैं। आर्द्रक का उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त सूत्रंकृतांग में है। इसके अतिरिक्त पुष्पशालपुत्र, वल्कलचीरी, कुर्मापुत्र, केतलिपुत्र, तेतलिपुत्र, भयालि, इन्द्रनाग ऐसे नाम हैं, जिनमें अधिकांश का उल्लेख जैन परम्परा के इसिमण्डल एवं अन्य ग्रंथों में मिल जाता है। पुष्पशाल, वल्कलचीरी, कुर्मापुत्र आदि का उल्लेख बौद्ध परम्परा में भी है, किंतु मधुरायण, सोरियायण आर्यायन आदि, जिनका उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त हिन्दू, जैन और बौद्ध परम्परा में अन्यत्र नहीं मिलता है, उन्हें भी पूर्णतया काल्पनिक व्यक्ति नहीं कह सकते। यदि हम ऋषिभाषित के ऋषियों की सम्पूर्ण सूची का अवलोकन करें, तो केवल सोम, यम, वरुण, वायु और वैश्रमण ऐसे नाम हैं, जिन्हें काल्पनिक कहा जा सकता है, किंतु जैन, बौद्ध और वैदिक- तीनों ही परम्पराएं इन्हें भी स्वीकृत करती हैं। महाभारत में वायु का उल्लेख एक ऋषि के रूप में मिलता है। यम को आवश्यकचूर्णि में यमदग्नि ऋषि
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy