________________ लिखी हुई थी। ग्रंथ मूलतः प्राकृत भाषा में है और उसमें 378 गाथाएं हैं, जो विद्याश्रम, वाराणसी के पुस्तकालय में है। ग्रंथ का विषय निमित्तशास्त्र से सम्बंधित है। इसी प्रकार, जिनरत्नकोश में भी शांतिनाथ भण्डार खंभात में उपब्लध जयपाहुड प्रश्नव्याकरण नामक ग्रंथ की सूचना उपलब्ध होती है, यद्यपि इसकी गाथा संख्या 228 बताई गई है। एक अन्य प्रश्नव्याकरण नामक ग्रंथ की सूचना हमें नेपाल के महाराजा की लायब्रेरी से प्राप्त होती है। श्री अगरचंदजी नाहटा की सूचना के अनुसार इस ग्रंथ की प्रतिलिपि तेरापन्थ धर्मसंघ के आचार्य मुनिश्री नथमलजी ने प्राप्त कर ली थी। इस लेख के प्रकाशन के पूर्व श्री जौहरीमलजी पारख, रावटी, जोधपुर के सौजन्य से इस ग्रंथ की फोटो कापी पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान को प्राप्त हो गई है। इसे अभी पूरा पढ़ा तो नहीं जा सका है, किंतु तुलनात्मक दृष्टि से देखने पर ज्ञात हुआ कि इसकी मूल गाथाएं तो सिंघी जैन ग्रंथमाला के अंतर्गत प्रकाशित कृति के समान ही हैं , किंतु टीका भिन्न है। इसकी एक अन्य फोटो कापी लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद से भी प्राप्त हुई है। एक अन्य प्रश्नव्याकरण की सूचना हमें पाटन ज्ञान भण्डार की सूची से प्राप्त होती है। यह ग्रंथ भी चूड़ामणि नामक टीका के साथ है और टीका का ग्रंथांक 2300 श्लोक परिमाण बताया गया है। यह प्रति भी काफी पुरानी हो सकती है। 18 इन सब आधारों से ऐसा लगता है कि प्रश्नव्याकरण का निमित्तशास्त्र से सम्बंधित संस्करण भी पूरी तरह विलुप्त नहीं हुआ होगा, अपितु उसे उससे अलग करके सुरक्षित कर लिया गया हो। यदि कोई विद्वान् इन सब ग्रंथों को लेकर उनकी विषयवस्तु को समवायांग, नंदीसूत्र एवं धवला में प्रश्नव्याकरण की उल्लिखित विषय सामग्री के साथ मिलान करे, तो यह पता चल सकेगा कि प्रश्नव्याकरण नामक जो अन्य ग्रंथ उपलब्ध हैं, वे प्रश्नव्याकरण के द्वितीय संस्करण के ही अंश हैं या अन्य हैं। यह भी सम्भव है कि समवायांग और नंदी के रचनाकाल में प्रश्नव्याकरण नामक कई ग्रंथ वाचना-भेद से प्रचलित हों और उनमें उन सभी विषयवस्तु को समाहित किया गया हो। इस मान्यता का एक आधार यह है कि ऋषिभाषित, समवायांग, नंदी एवं अनुयोगद्वार में (64)