________________ तथा कुछ भाग सूत्रकृतांग, ज्ञाताधर्मकथा और उत्तराध्ययन के कुछ अध्यायों के रूप में सुरक्षित है। प्रश्नव्याकरण का इसिभासियाई वाला अंश वर्तमान इसिभासियाई (ऋषिभाषित), महावीरभासियाई में तथा आयरियभासियाई का कुछ अंश उत्तराध्ययन के अध्ययनों में सुरक्षित है। ऋषिभाषित के तेत्तलिपुत्र नामक अध्याय की विषय सामग्री ज्ञाताधर्मकथा के 14 वें तेत्तलिपुत्र नामक अध्याय में आज भी उपलब्ध है। उत्तराध्ययन के अनेक अध्याय प्रश्नव्याकरण के अंश थे, इसकी पुष्टि अनेक आधारों से की जा सकती है। सर्वप्रथम उत्तराध्ययन नाम ही इस तथ्य को सूचित करता है कि यह किसी ग्रंथ के उत्तर-अध्ययनों से बना हुआ ग्रंथ है। इसका तात्पर्य है कि इसकी विषय - सामग्री पूर्व में किसी ग्रंथ का उत्तरवर्ती अंश रही होगी। इस तथ्य की पुष्टि का दूसरा किंतु सबसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण यह है कि उत्तराध्ययननियुक्ति गाथा 4 में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि उत्तराध्ययन का कुछ भाग अंग साहित्य से लिया गया है। उत्तराध्ययन नियुक्ति की इस गाथा का तात्पर्य यह है कि बंधन और मुक्ति से सम्बंधित जिनभाषित और प्रत्येकबुद्ध के संवादरूप इसके कुछ अध्ययन अंग ग्रंथों से लिए गए हैं। नियुक्तिकार का यह कथन तीन मुख्य बातों पर प्रकाश डालता है। प्रथम तो यह कि उत्तराध्ययन के जो 36 अध्ययन हैं, उनमें कुछ जिनभाषित और प्रत्येकबुद्ध के संवादरूप इसके कुछ अध्ययन अंग ग्रंथों से लिए गए हैं। अब यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि वह अंग-ग्रंथ कौन-सा था, जिससे उत्तराध्ययन के ये भाग लिए गए हैं? कुछ आचार्यों ने दृष्टिवाद से इसके परिषह आदि अध्यायों को लिए जाने की कल्पना की है, किंतु मेरी दृष्टि में इसका कोई आधार नहीं है। इसकी सामग्री उसी ग्रंथ से ली जा सकती है, जिसमें महावीरभाषित और प्रत्येकबुद्धभाषित विषयवस्तु हो। इस प्रकार विषयवस्तु प्रश्नव्याकरण की ही थी, अतः उससे ही इन्हें लिया गया होगा। यह बात निर्विवाद रूप से स्वीकार की जा सकती है कि चाहे उत्तराध्ययन के समस्त अध्ययन तो नहीं, किंतु कुछ अध्ययन तो अवश्य ही महावीर भाषित हैं। एक बार हम उत्तराध्ययन के 36 वें अध्ययन एवं उसके अंत में दी हुई उस गाथा को, जिसमें उसका महावीरभाषित होना स्वीकार किया गया