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________________ द्वितीय संस्कारों की विषयवस्तु पूर्णत: नष्ट हो गई है या वह आज भी पूर्णत: या आंशिक रूप में सुरक्षित है। मेरी दृष्टि में प्रश्नव्याकरण के प्रथम संस्करण में ऋषिभाषित, आचार्यभाषित और महावीरभाषित के नाम से जो सामग्री थी, वह आज भी ऋषिभाषित, ज्ञाताधर्मकथा, सूत्रकृतांग एवं उत्तराध्ययन मे बहुत कुछ सुरक्षित है। ऐसा लगता है कि ईस्वी सन् के पूर्व ही उस सामग्री को वहां से अलग कर इसिभासियाई के नाम से स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में सुरक्षित कर लिया गया था। जैन परम्परा में ऐसे प्रयास अनेक बार हुए हैं, जब चूला या चूलिका के रूप में ग्रंथों में नवीन सामग्री जोड़ी जाती रही अथवा किसी ग्रंथ की सामग्री को निकालकर उससे एक नया ग्रंथ बना दिया। उदाहरण के रूप में, किसी समय निशीथ को आचारांग की चूला के रूप में जोड़ा गया और कालांतर में उसे वहां से अलग कर निशीथ नामक नया ग्रंथ ही बना दिया गया। इसी प्रकार, आयारदशा (दशाश्रुतस्कंध) के आठवें अध्याय (पर्युषणकल्प) की सामग्री से कल्पसूत्र नामक एक नया ग्रंथ ही बना दिया गया। अतः, यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि पहले प्रश्नव्याकरण में इसिभासियाई के अध्याय जुड़े हों और फिर उन अध्ययनों की सामग्री को वहां से अलग कर इसिभासियाई नामक स्वतंत्र ग्रंथ अस्तित्व में आया हो। मेरा यह कथन निराधार भी नहीं है। प्रथम तो दोनों नामों की साम्यता तो है ही, साथ ही समवायांग में यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि प्रश्नव्याकरण में स्वसमय और परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धों के कथन हैं। (पण्हावागरणदसासुणं ससमय-परसमय पण्णवय-पत्तेअबुद्ध.... भासियाइणं, समवायांग 547) / इसिभासियाई के सम्बंध में यह स्पष्ट मान्यता है कि उसमें प्रत्येकबुद्धों के वचन हैं। मात्र यही नहीं, समवायांग समय- परसमय पण्णवय पत्तेअबुद्ध- अर्थात् स्वसमय और परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्ध का उल्लेख कर इसकी पुष्टि भी कर देता है कि वे प्रत्येकबुद्ध मात्र जैन परम्परा के नहीं है, अपितु अन्य परम्पराओं के भी हैं। इसिभासियाई में मंखलिगोशाल, देवनारद, असितदेवल, याज्ञवल्क्य, उद्दालक आदि से सम्बंधित अध्याय भी इसी तथ्य को सूचित करते हैं। मेरी दृष्टि में प्रश्नव्याकरण का प्राचीनतम अधिकांश भाग आज भी इसिभासिंयाई में
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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