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________________ चमत्कारिक विद्याओं से युक्त कोई प्रश्नव्याकरण बना भी था या यह सब कल्पना की उड़ानें हैं ? यह सत्य है कि प्रश्नव्याकरण की पद संख्या का समवायांग, नंदी, नंदीचूर्णि और धवला में जो उल्लेख है, वह काल्पनिक है। यद्यपि समवायांग और नंदी प्रश्नव्याकरण के पदों की निश्चित संख्या नहीं देते हैं, मात्र संख्यातशत-सहस्त्र- ऐसा उल्लेख करते हैं, किंतु नंदीचूर्णि एवं समवायांगवृत्ति 13 में उसके पदों की संख्या 9216000 और धवला 14 में 9316000 बताई गई है, जो मझो तो काल्पनिक ही अधिक लगती है। मेरी अवधारणा यह है कि स्थानांग, समवायांग, नंदी, तत्त्वार्थ, राजवार्तिक, धवला एवं जयधवला में प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु का जिस रूप में उल्लेख है, वह पूर्णतः काल्पनिक चाहे न हो, किंतु उसमें सत्यांश कम और कल्पना का पुट अधिक है। यद्यपि निमित्तशास्त्र के विषय को लेकर कोई प्रश्नव्याकरण अवश्य बना होगा, फिर भी उसमें समवायांग और धवला में वर्णित समग्र विषयवस्तु एवं चमत्कारिक विद्याएं रही होंगी- यह कहना कठिन ही है। - इसी संदर्भ में समवायांग के मूलपाठ ‘अद्दागंगुट्ट बाहुअसिमणि खोमआइच्चभासियाणं 5 के अर्थ के सम्बंध में भी यहां हमें पुनर्विचार करना होगा। कहीं अद्दाग, अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, खोम (क्षोम) और आदित्य व्यक्ति तो नहीं है, क्योंकि इनके द्वारा भाषित कहने का क्या अर्थ है ? स्थानांग के विवरण की समीक्षा करते हुए जैसी कि मैंने सम्भावना प्रकट की है कि कहीं अद्दाग-आर्द्रक, बाहु-बाहुक, खोम-सोम नामक ऋषि तो नहीं हैं, क्योंकि ऋषिभाषित में इनके उल्लेख हैं। आदित्य भी कोई ऋषि हो सकते हैं, केवल अंगुट्ठ, असि और मणि- ये तीन नाम अवश्य ऐसे हैं, जिनके व्यक्ति होने की सम्भावना धूमिल है। .. इस समग्र चर्चा का फलित तो मात्र यही है कि प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु समय-समय पर बदलती रहती है। क्या प्रश्नव्याकरण की प्राचीन विषयवस्तु सुरक्षित है ? ___यहां यह चर्चा भी महत्त्वपूर्ण है कि क्या प्रश्नव्याकरण के प्रथम और (59)
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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