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________________ क्योंकि यहां तक इसकी विषयवस्तु में नैमित्तिक विद्याओं का अधिक प्रवेश नहीं देखा जाता है। स्थानांग प्रश्नव्याकरण के जिन दस अध्ययनों का निर्देश करता है, उनमें भी मेरी दृष्टि में इसिभासियाई, आयरियभासियाई और महावीरभासियाई- ये तीन प्राचीन प्रतीत होते हैं। ‘उवमा’ और ‘संखा' की सामग्री क्या थी ? कहा नहीं जा सकता, यद्यपि मेरी दृष्टि में ‘उवमा' में कुछ रूपकों के द्वारा धर्मबोध कराया गया होगा। जैसा कि ज्ञाताधर्मकथा में कूर्म और अण्डों के रूपकों द्वारा क्रमशः यह समझाया गया है कि जो इंद्रिय संयम नहीं करता है, वह दुःख को प्राप्त होता है और जो साधना में अस्थिर चित्त रहता है वह फल को प्राप्त नहीं करता है, इसी प्रकार ‘संखा' में स्थानांग और समवायांग के समान संख्या के आधार पर वर्णित सामग्री हो। यद्यपि यह भी संभव है कि संखा नामक अध्ययन का सम्बंध सांख्यदर्शन से रहा हो, क्योंकि अन्य परम्पराओं के विचारों को प्रस्तुत करने की उदारता इस ग्रंथ में थी, साथ ही प्राचीन काल में सांख्य श्रमणधारा का ही दर्शन था और जैन दर्शन से उसकी निकटता थी। ऐसा प्रतीत होता है कि अद्दागपसिणाई, बाहुपसिणाई आदि अध्यायों के सम्बंध भी निमित्तशास्त्र से न होकर इन नाम वाले व्यक्तियों की तात्त्विक परिचर्चा से रहा हो, वे क्रमशः आर्द्रक और बाहुक नामक ऋषियों की तत्त्वचर्चा से सम्बंधित रहे होंगे। अद्दागपसिणाई की टीकाकारों ने 'आदर्श प्रश्न' ऐसी जो संस्कृत छाया की है, वह भी उचित नहीं है। उसकी संस्कृत छाया आर्द्रक प्रश्न' - ऐसी होना चाहिए। आर्द्रक से हुए प्रश्नोत्तरों की चर्चा सूत्रकृतांग में मिलती है, साथ ही वर्तमान ऋषिभाषित में भी ‘अदाएण' (आर्द्रक) और बाहु (बाहुक) नामक अध्ययन उपलब्ध हैं। हो सकता है कि कोमल और खोम (क्षोम) भी कोई ऋषि रहे हैं। सोम का उल्लेख भी ऋषिभाषित में हैं, फिर भी यदि हम यह मानने को उत्सुक ही हो कि ये अध्ययन निमित्तशास्त्र से सम्बंधित थे, तो हमें यह मानना होगा कि यह सामग्री उसमें बाद में जुड़ी है, प्रारम्भ में उसका अंग नहीं थी, क्योंकि प्राचीनकाल में निमित्तशास्त्र का अध्ययन जैन भिक्षु के लिए वर्जित था और इसे पापश्रुत माना जाता था। स्थानांग और समवायांग- दोनों में प्रश्नव्याकरण सम्बंधी जो विवरण
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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