________________ जरा- मरण, रोग आदि सांसारिक दुःखों का वर्णन किया जाता है। उसमें यह भी कहा गया है कि प्रश्नव्याकरण प्रश्नों के अनुसार हत, नष्ट, मुष्टि, चिंता, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवित, मरण, जय, पराजय, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या निरूपण करता है। इस प्रकार, प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु के सम्बंध में प्राचीन उल्लेखों में एकरूपता नहीं है। प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु सम्बंधी विवरणों की समीक्षा मेरी दृष्टि में प्रश्नव्याकरणसूत्र की विषयवस्तु के तीन संस्कार हुए होंगे। प्रथम एवं प्राचीनतम संस्कार, जो ‘वागरण' कहा जाता था, में ऋषिभाषित, आचार्यभाषित और महावीरभाषित ही इसकी प्रमुख विषयवस्तु रही होगी। ऋषिभाषित में ‘वागरण' ग्रंथ का एवं उसकी विषयवस्तु की ऋषिभाषित से समानता का उल्लेख है। इससे प्राचीनकाल (ई.पू. चौथी या तीसरी शताब्दी) में उसके अस्तित्व की सूचना तो मिलती ही है, साथ ही प्रश्नव्याकरण और ऋषिभाषित का सम्बंध भी स्पष्ट होता है। - स्थानांगसूत्र में प्रश्नव्याकरण का वर्गीकरण दस दशाओं में किया है। सम्भवतः, जब प्रश्नव्याकरण में इस प्राचीन संस्करण की रचना हुई होगी, तब ग्यारह अंगों अथवा द्वादश गणिपिटिक की अवधारणा भी स्पष्ट रूप से नहीं बन पाई थी। अंग-आगम साहित्य के 5 ग्रंथ उपासक दशा, अंतकृद्दशा, प्रश्नव्याकरणदशा, अनुत्तरोपपातिक दशा तथा कर्मविपाक-दशा (विपाकदशा) दस दशाओं में ही परिगणित किए जाते थे। आज इन दशाओं में उपर्युक्त पांच तथा आचारदशा, जो आज दशाश्रुतस्कंध के नाम से जानी जाती है, को छोड़कर शेष चार- बंधदशा, द्विगृद्धिदशा, दीर्घदशा और संक्षेपदशा अनुपलब्ध हैं। उपलब्ध छह दशाओं में भी उपासकदशा और आयारदशा की विषयवस्तु स्थानांग में उपलब्ध विवरण के अनुरूप है। कर्मविपाक और अनुत्तरोपपातिकदशा की विषयवस्तु में कुछ समानता है और कुछ भिन्नता है, जबकि प्रश्नव्याकरणदशा और अंतकृद्दशा की विषयवस्तु पूरी तरह बदल गई है। स्थानांग में प्रश्नव्याकरण की जो विषयवस्तु सूचित की गई है, वही इसका प्राचीनतम संस्करण लगता है,