________________ प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु के सम्बंध में उपलब्ध विवरणों को देखें, तो हमें उसकी विषयवस्तु में हुए परिवर्तनों की स्पष्ट सूचना उसमें मिल जाती है। (अ) स्थानांग - प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु के सम्बंध में प्राचीनतम उल्लेख स्थानांगसूत्र में मिलता है। इसमें प्रश्नव्याकरण की गणना दस दशाओं में की गई है तथा उसके निम्न दस अध्ययन बताए गए हैं - 1. उपमा, 2. संख्या, 3. ऋषिभाषित, 4. आचार्यभाषित, 5. महावीरभाषित, 6. क्षोभिक प्रश्न, 7. कोमलप्रश्न, 8. आदर्शप्रश्न (आद्रक प्रश्न), 9. अंगुष्ठप्रश्न, 10. बाहुप्रश्न। इससे फलित होता है कि सर्वप्रथम यह दस अध्यायों का ग्रंथ था। दस अध्यायों के ग्रंथ दसा (दशा) कहे जाते थे। (ब) समवायांग- स्थानांग के पश्चात् प्रश्नव्याकरणसूत्र की विषयवस्तु का अधिक विस्तृत विवेचन करने वाला आगम समवायांग है। समवायांग में . उसकी विषयवस्तु का निर्देश करते हुए कहा गया है कि प्रश्नव्याकरणसूत्र में 108 प्रश्नों, 108 अप्रश्नों और 108 प्रश्नाप्रश्नों की विद्याओं के अतिशयों (चमत्कारों) का तथा नागों-सुपर्णों के साथ दिव्य संवादों का विवेचन है। यह प्रश्नव्याकरण दशा स्वसमय-परसमय के प्रज्ञापक एवं विविध अर्थों वाली भाषा के प्रवक्ता प्रत्येकबुद्धों के द्वारा भाषित अतिशय गुणों एवं उपशमभाव के धारक तथा ज्ञान के आकर आचार्यों के द्वारा विस्तार से भाषित और जगत् के हित के लिए वीर महर्षि के द्वारा विशेष विस्तार से भाषित है। यह आदर्श (अहाग). अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, क्षौम (वस्त्र) एवं आदित्य (के आश्रय से) भाषित है। इसमें महाप्रश्न विद्या, मनप्रश्नविद्या, देवप्रयोग आदि का उल्लेख है। इसमें सब प्राणियों के प्रधान गुणों के प्रकाशक, दुर्गुणों को अल्प करने वाले, मनुष्यों की मति को विस्मित करने वाले, अतिशयमय कालज्ञ एवं शमदम से युक्त उत्तर तीर्थंकरों के प्रवचन में स्थित करने वाले, दुरभिगम, दुरवगाह, सभी सर्वज्ञों के द्वारा सम्मत सभी अज्ञजनों को बोध कराने वाले प्रत्यक्ष प्रतीतिकारक, विविधगुणों से और महान् अर्थों से युक्त जिनवर प्रणीत प्रश्न (वचन) कहे गए हैं। प्रश्नव्याकरण अंग की सीमित वाचनाएं हैं, संख्यात् अनुयोगद्वार हैं, संख्यात् प्रतिपत्तियां हैं, संख्यात् वेढ हैं, संख्यात् श्लोक हैं, संख्यात् नियुक्तियां