________________ उपर्युक्त विवरण से हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि वर्तमान में उपलब्ध अंतकृद्दशा की विषयवस्तु नंदीसूत्र की रचना के कुछ समय पूर्व तक अस्तित्व में आ गई थी। ऐसा लगता है कि वल्लभी वाचना के पूर्व ही प्राचीन अंतकृद्दशा के अध्यायों की या तो उपेक्षा कर दी गई, या उन्हें यत्र-तत्र अन्य ग्रंथों में जोड़ दिया गया था और इस प्रकार प्राचीन अंतकृद्दशा की विषयवस्तु के स्थान पर नवीन विषयवस्तु रख दी गई। यहां यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो सकता है कि ऐसा क्यों किया गया। क्या विस्मृति के आधार पर प्राचीन अंतकृद्दशा की विषयवस्तु लुप्त हो गई अथवा उसकी प्राचीन विषयवस्तु सप्रयोजन वहां से अलग कर दी गई। ___ मेरी मान्यता यह है कि विषयवस्तु का यह परिवर्तन विस्मृति के कारण नहीं, परंतु सप्रयोजन ही हुआ है। अंतकृद्दशा की प्राचीन विषयवस्तु में जिन दस व्यक्तियों के चरित्र का चित्रण किया गया था, उनमें निश्चित रूप से मातंग, अम्बड, रामपुत्त, भयाली (भगाली); जमाली आदि ऐसे हैं, जो चाहे किसी समय तक जैन परम्परा में सम्मान्य रूप से रहे हों, किंतु अब वे जैन परम्परा के विरोधी या बाहरी मान लिए गए थे। जिनप्रणीत अंगसूत्रों में उनका उल्लेख रखना समुचित नहीं माना गया, अतः जिस प्रकार प्रश्नव्याकरण से ऋषिभाषित को ऋषियों के उपदेशों से सप्रयोजन अलग किया गया, उसी प्रकार अंतकृद्दशा से इनके विवरण को भी सप्रयोजन अलग किया। यह भी सम्भव है कि अब जैन परम्परा में श्रीकृष्ण को वासुदेव के रूप से स्वीकार कर लिया गया, तो उनके तथा उनके परिवार से सम्बंधित कथानकों को कहीं स्थान देना आवश्यक था, अतः अंतकृद्दशा की प्राचीन विषयवस्तु को बदलकर उसके स्थान पर कृष्ण और उनके परिवार से सम्बंधित पांच वर्गों को जोड़ दिया गया। अंतकृद्दशा की विषयवस्तु की चर्चा करते हुए सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य हमारे सामने यह आता है कि दिगम्बर परम्परा में अंतकृद्दशा की जो विषयवस्तु तत्त्वार्थवार्त्तिक में उल्लिखित है, वह स्थानांग की सूची से बहुत कुछ मेल खाती है। यह कैसे सम्भव हुआ? दिगम्बर परम्परा जहां अंग आगमों के लोप की बात करती है, तो फिर तत्त्वार्थवार्त्तिककार को उसकी प्राचीन विषयवस्तु के सम्बंध