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________________ में छठवें वर्ग के द्वितीय अध्याय का नाम किंकम है, यद्यपि यहां तत्सम्बंधी विवरण का अभाव है। स्थानांग में अंतकृद्दशा के नौवें अध्ययन का नाम चिल्वक या चिल्लवाक है। कुछ प्रतियों में इसके स्थान पर ‘पल्लेतीय'- ऐसा नाम भी मिलता है। इसके सम्बंध में भी हमें कोई विशेष जानकारी नहीं है। दिगम्बर आचार्य अकलंकदेव भी इस सम्बंध में स्पष्ट नहीं हैं। स्थानांग में दसवें अध्ययन का नाम फालअम्बडपुत्त बताया है, जिसका संस्कृत रूप पालअम्बष्ठपुत्र हो सकता है। अम्बड संन्यासी का उल्लेख हमें भगवतीसूत्र में विस्तार से मिलता है। अम्बड के नाम से एक अध्ययन ऋषिभाषित में भी है। यद्यपि विवाद का विषय यह हो सकता है कि जहां ऋषिभाषित और भगवती उसे अम्बड परिव्राजक कहते हैं, वहां उसे अम्बडपुत्त कहा गया है। . ऐतिहासिक दृष्टि से गवेषणा करने पर हमें ऐसा लगता है कि स्थानांग में अंतकृद्दशा के जो 10 अध्ययन बताए गए हैं, वे यथार्थ व्यक्तियों से सम्बंधित रहे होंगे, क्योंकि उनमें से अधिकांश के उल्लेख अन्य स्रोतों से भी उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं, जिनका उल्लेख बौद्ध परम्परा में मिल जाता है, यथा - रामपुत्त, सोमिल, मातंग आदि। . अंतकृद्दशा की विषयवस्तु के सम्बंध में विचार करते समय हम सुनिश्चित रूप से इतना कह सकते हैं कि इन सबमें स्थानांग सम्बंधी विवरण अधिक प्रामाणिक तथा ऐतिहासिक सत्यता को लिए हुए है। समवायांग में एक ओर इसके दस अध्ययन बताए गए हैं, तो दूसरी ओर समवायांगकार सात वर्गों की भी चर्चा करता है। इससे ऐसा लगता है कि समवायांग के उपर्युक्त विवरण लिखे जाने के समय स्थानांग में उल्लिखित अंतकृद्दशा की विषयवस्तु बदल चुकी थी, किंतु वर्तमान में उपलब्ध अंतकृद्दशा का पूरी तरह निर्माण भी नहीं हो पाया था, केवल सात ही वर्ग बने थे। वर्तमान में उपलब्ध अंतकृद्दशा की रचना नंदीसूत्र में तत्सम्बंधी विवरण लिखे जाने के पूर्व निश्चित रूप से हो चुकी थी, क्योंकि नंदीसूत्रकार उसमें 10 अध्ययन होने का कोई उल्लेख नहीं करता है, साथ ही वह आठ वर्गों की चर्चा करता है। वर्तमान अंतकृद्दशा के भी आठ वर्ग ही हैं।
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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