________________ नामक अध्याय वर्तमान में उत्तराध्ययनसूत्र में उपलब्ध है। यद्यपि यह कहना कठिन है कि स्थानांग में उल्लिखित 'नमि' नामक अध्ययन और उत्तराध्ययन में उल्लिखित 'नमि' नामक अध्ययन की विषयवस्तु एक थी या भिन्न-भिन्न थी। नमि का उल्लेख सूत्रकृतांग में भी उपलब्ध होता है। वहां पाराशर, रामपुत्त आदि प्राचीन ऋषियों के साथ उनके नाम का भी उल्लेख हुआ है। स्थानांग में उल्लिखित द्वितीय 'मातंग' नामक अध्ययन ऋषिभाषित के 26 वें मातंग नामक अध्ययन के रूप में आज उपलब्ध है, यद्यपि विषय-वस्तु की समरूपता के सम्बंध में यहां भी कुछ कह पाना कठिन है। सोमिल नामक तृतीय अध्ययन का नाम साम्य ऋषिभाषित के 42 वें सोम नामक अध्याय के साथ देखा जा सकता है। रामपुत्त नामक चतुर्थ अध्ययन भी ऋषिभाषित के तेईसवें अध्ययन के रूप में उल्लिखित है। समवायांग के अनुसार द्विगृद्धिदशा के एक अध्ययन का नाम भी रामपुत्त था। यह भी सम्भव है कि अंतकृद्दशा, इसिभासियाई और द्विगृद्धिदशा के रामपुत्त नामक अध्ययन की विषयवस्तु भिन्न हो, चाहे व्यक्ति वही हो। सूत्रकृतांगकार ने रामपुत्त का उल्लेख अर्हत् प्रवचन में एक सम्मानित ऋषि के रूप में किया है। रामपुत्त का उल्लेख पालित्रिपिटक साहित्य में हमें विस्तार से मिलता है। स्थानांग में उल्लिखित अंतकृद्दशा का पांचवां अध्ययन सुदर्शन है। वर्तमान में अंतकृद्दशा में छठवें वर्ग के दसवें अध्ययन का नाम सुदर्शन है। स्थानांग के अनुसार अंतकृद्दशा का छठवां अध्ययन जमाली है। अंतकृद्दशा में सुदर्शन का विस्तृत उल्लेख अर्जुन मालाकार के अध्ययन में भी है। जमाली का उल्लेख हमें भगवतीसूत्र में भी उपलब्ध होता है, यद्यपि भगवतीसूत्र में जमाली को भगवान् महावीर के क्रियमाणकृत के सिद्धांत का विरोध करते हुए दर्शाया गया है। श्वेताम्बर परम्परा जमाली को भगवान् महावीर का जामातृ भी मानती है। परवर्ती साहित्य नियुक्ति, भाष्य और चूर्णियों में भी जमाली का उल्लेख पाया जाता है और उन्हें एक निह्नव बताया गया है। स्थानांग की सूची के अनुसार अंतकृद्दशा का सातवां अध्ययन भयाली (भगाली) है। ‘भगाली मेतेज' ऋषिभाषित के 13 वें अध्ययन में उल्लिखित है। स्थानांग की सूची में अंतकृद्दशा के आठवें अध्ययन का नाम किंकम या किंकस है। वर्तमान में उपलब्ध अंतकृद्दशा (44)