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________________ प्राचीन जैनागमों-आचारांग, सूत्रकृतांग और ऋषिभाषित . में चार्वाकदर्शन का प्रस्तुतिकरण एवं समीक्षा चार्वाक या लोकायत-दर्शन का भारतीय दार्शनिक चिंतन में भौतिकवादी दर्शन के रूप में विशिष्ट स्थान है। भारतीय चिंतन में भौतिकवादी जीवनदृष्टि की उपस्थिति के साहित्यिक प्रमाण अतिप्राचीन काल से ही उपलब्ध होने लगते हैं। भारत की प्रत्येक धार्मिक एवं दार्शनिक चिंतनधारा ने उसकी समालोचना भी की है। जैन धर्म एवं दर्शन के ग्रंथों में भी इस भौतिकवादी जीवनदृष्टि का प्रतिपादन एवं उसकी समीक्षा अति प्राचीनकाल से ही मिलने लगती है। जैन धार्मिक एवं दार्शनिक साहित्य में महावीर के युग से लेकर आज तक लगभग 2500 वर्ष की सुदीर्घ कालावधि में इस विचारधारा का प्रस्तुतिकरण एवं समालोचना होती रही है। इस समग्र विस्तृत चर्चा को प्रस्तुत निबंध में समेट पाना सम्भव नहीं है, अतः हम प्राचीन प्राकृत आगम साहित्य तक ही अपनी इस चर्चा को सीमित रखेंगे। प्राचीन प्राकृत जैन-आगम-साहित्य में ऋषिभाषित एक ऐसा ग्रंथ है, जो चार्वाक दर्शन को भौतिकवादी और स्वार्थपरक अनैतिक जीवनदृष्टि का समर्थक न मानकर उसे एक मूल्यपरक सदाचारी जीवनदृष्टि का सम्पोषक और भारतीय श्रमण संस्कृति का अंग मानता है। प्राचीनतम प्राकृत आगम-साहित्य में मुख्यतया आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन और ऋषिभाषित को समाहित किया जा सकता है। ये सभी ग्रंथ ई.पू. पांचवीं शती से लेकर ई.पू. तीसरी शती के बीच निर्मित हुए हैं- ऐसा माना जाता है। इसके अतिरिक्त, उपांग साहित्य के एक ग्रंथ राजप्रश्नीय को भी हमने इस चर्चा में समाहित किया है। इसका कारण है कि राजप्रश्नीय का वह भाग, जो चार्वाक दर्शन का प्रस्तुतिकरण और समीक्षा करता है, एक तो चार्वाक दर्शन के पूर्वपक्ष की स्थापना एवं उसकी समीक्षा- दोनों ही दृष्टि से अति समृद्ध है, दूसरे, अति प्राचीन भी माना जाता है, क्योंकि ठीक यही चर्चा हमें बौद्ध त्रिपिटक साहित्य में भगवान् बुद्ध और राजा पयासी के मध्य होने का उल्लेख मिलता है।' जैन परम्परा में इस चर्चा को पार्खापत्य परम्परा के भगवान् महावीर के समकालीन आचार्य केशीकुमार श्रमण और राजा पयासी के मध्य और बौद्ध त्रिपिटक में भगवान् बुद्ध और राजा पयासी के बीच सम्पन्न हुआ बताया गया है। यद्यपि कुछ
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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