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________________ केशीकुमार श्रमण का यह प्रत्युत्तर सुनकर राजा ने पुनः नया तर्क प्रस्तुत किया। उसने कहा कि मैंने एक व्यक्ति को जीवित रहते हुए और मरने के बाददोनों ही दशाओं में तौला, किंतु दोनों के तौल में कोई अंतर नहीं था। यदि मृत्यु के बाद आत्मा उसमें से निकली होती, तो उसका वजन कुछ कम अवश्य होना चाहिए था। इसके प्रत्युत्तर में केशीकुमार श्रमण ने वायु से भरी हुई और वायु से रहित मशख के तौल होने का उदाहरण दिया और यह बताया कि जिस प्रकार वायु अगुरुलघु है, उसी प्रकार जीव भी अगुरुलघु है, अतः तुम्हारा यह तर्क युक्तिसंगत नहीं है कि जीव और शरीर भिन्न-भिन्न नहीं हैं। (अब यह तर्क भी वैज्ञानिक दृष्टि से युक्तिसंगत नहीं रह गया है, क्योंकि वैज्ञानिक यह मानते हैं कि वायु में वजन होता है। दूसरे, यह भी प्रयोग करके देखा गया है कि जीवित और मृत शरीर के वजन में अंतर पाया जाता है। उस युग में सूक्ष्म तुला के अभाव के कारण यह अंतर ज्ञात नहीं होता रहा होगा।) ___ राजा ने फिर एक अन्य तर्क प्रस्तुत किया और कहा कि मैंने एक चोर के शरीर के विभिन्न अंगों को काटकर, चीरकर देखा, लेकिन मुझे कहीं भी जीव नहीं दिखाई दिया, अतः शरीर से पृथक् जीव की सत्ता सिद्ध नहीं होती। इसके प्रत्युत्तर में केशीकुमार श्रमण ने उसे निम्न उदाहरण देकर समझाया - 'हे राजन् ! तू बड़ा मूढ़ मालूम होता है। मैं तुझे एक उदाहरण देकर समझाता हूं। एक बार कुछ वनजीवी साथ में अग्नि लेकर एक बड़े जंगल में पहुंचे। उन्होंने अपने एक साथी से कहा- हे देवानुप्रिय! हम जंगल में लकड़ी लेने जाते हैं, तू इस अग्नि से आग जलाकर हमारे लिए भोजन बनाकर तैयार रखना। यदि अग्नि बुझ जाए, तो लकड़ियों को घिसकर अग्नि जला लेना। उसके साथियों के चले जाने पर थोड़ी ही देर बाद आग बुझ गई। अपने साथियों के आदेशानुसार वह लकड़ियों को चारों ओर से उलट-पलट कर देखने लगा, लेकिन आग कहीं नजर नहीं आई। उसने अपनी कुल्हाड़ी से लकड़ियों को चीरा, उनके छोटे-छोटे टुकड़े किए, किंतु फिर भी आग दिखाई नहीं दी। वह निराश होकर बैठ गया और सोचने लगा कि देखो, मैं अभी तक भी भोजन तैयार नहीं कर सका। इतने में जंगल में से उसके साथी लौटकर आ गए, उसने उन लोगों से सारी बातें कहीं। इस पर उनमें से एक साथी ने शर बनाया और शर को अरणि के साथ घिसकर अग्नि जलाकर दिखाई और फिर सबने भोजन बनाकर खाया। हे पएसी! जैसे लकड़ी
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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