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________________ 84 शीर्षप्रहेलिकांग = 1 शीर्षप्रहेलिका इसी प्रकार हम देखते हैं कि उपांग साहित्य में जीवविज्ञान, पादपविज्ञान, खगोल, भूगोल, इतिहास, समाज, संस्कृति, शिल्प, कला आदि प्रायः सभी विषयों पर विपुल सामग्री उपलब्ध है। इसके बाद सागरोपम और पल्योपम का वर्णन किया गया है। रत्न के नाम - इसी प्रसंग में उसमें सोलह प्रकार के रत्न का उल्लेख है- रत्न, वस्त्र, वैडूर्य, लोहित, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, ज्योतिरस, अंजन, अंजनपुलक, रजत, जातरूप, अंक, स्फटिक, अरिष्ट। (69) / प्रज्ञापना नामक उपांग में भी इनका उल्लेख है। अस्त्र-शस्त्रों के नाम मुद्गर, मुसुंढि, करपत्र (करवत), असि, शक्ति, हल, गदा, मूसल, चक्र, नाराच, कुंत, तोमर, शूल, लकुट, भिडिपाल' (89) / धातुओं के नाम लोहा, ताम्बा, सीसा, रूप्य, सुवर्ण, हिरण्य, कुंभकार की अग्नि, ईंट पकाने की अग्नि, कवेलू पकाने की अग्नि, यंत्रपाटक चुल्ली (जहां गन्ने का रस पकाया जाता है) (89) / मद्यों के नाम - चन्द्रप्रभा (चन्द्रमा के समान जिसका रंग हो), मणिशलाका, वरसीधु, वरवारूणी, फलनिर्याससार (फलों के रस से तैयार की हुई मदिरा), पत्रनिर्याससार, पुष्पनिर्याससार, चोयनिर्याससार, बहुत द्रव्यों को मिलाकर तैयार की हुई, संध्या के समय तैयार हो जाने वाली, मधु, मेरक, रिष्ठ नामक रत्न के समान वर्णवाली (इसे जम्बूफलकलिका भी कहा गया है), दुग्धजाति (पीने में दूध के समान मालूम होती हो), प्रसन्ना नेल्लक (अथवा तल्लक) शतायु (सौ बार शुद्ध करने पर भी जैसी की वैसी रहने वाली), खजूरसार, मुढीकासार (द्वाक्षसद), कापिशायन, सुपक्व, क्षोदरस (ईख के रस को पकाकर बनाई हुई)। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति एवं प्रज्ञापना में भी इनका उल्लेख है।
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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