________________ इंद्रग्रह, स्कंदग्रह, नागग्रह, भूतपह, उद्वेग, एकाहिका (एक दिन छोड़कर ज्वर आना), द्वयाहिका (दो दिन छोड़कर ज्वर आना), व्याहिका, चतुर्थका (चौथिया), हृदयशूल, मस्तकशूल, पार्श्वशूल, कुक्षिशूल, योनिशूल, मारी (जीवाभिगम 111) / देवों के प्रकार - देव चार प्रकार के होते हैं - भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक। भवनवासी दस होते हैं- असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, दीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार (जीवाभिगमसूत्र 114-120) / व्यन्तरों के अनेक प्रकार हैं - पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, भुजगपति, महाकाय, गंधर्वगण आदि (वहीं सूत्र 121), ज्योतिष्क देवों का वर्णन सूत्र 122 में है। प्रज्ञापनासूत्र में उल्लेखित जीवन के विविध रूप एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के हैं- पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक (10) / बादर पृथिवीकायिक अनेक प्रकार के हैं- शुद्ध पृथिवी, लोहा, तांबा, जस्ता, सीसा, चांदी, सुवर्ण, वज्ररत्न, हड़ताल, हिंगुल (सिंगरफ), मणसिल (मैनसिल), सासग (पारा), अंचन, प्रवाल, अभ्रपटल (अभरख), अभ्ररूचक, अडक, स्फटिक, लोहिताक्ष, मरकत, मसारनल्ल, भुजमोचक, इंद्रनील, चंदनरत्न, गैरिक, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिकक, चंद्रप्रभ, वैडूर्य, जलकांत, सूर्यकांत' इत्यादि। खरबादर पृथिवीकायिक है (25) / बादर अप्कायिक जीव अनेक प्रकार के होते हैं - अवश्याय (ओस), हिम, महिका (कुहरा), करक (ओला), हरतनु (वनस्पति के ऊपर की पानी की बूंदें), शुद्धोदक, शीतोदक, उष्णोदक, क्षारोदक, खट्टा, उदक, अम्लोदक, लवणोदक, वारुणोदक (मदिरा के स्वादवाला पानी), क्षीरोदक, धृतोदक, क्षोदोदक (ईख के रस जैसा पानी) और रसोदक (16) / बादर तेजस्कायिक अनेक प्रकार के हैं - अंगार, ज्वाला, मुर्मुर (राख में मिले हुए आग के कण), अर्चित (इधर-उधर उड़ती हुई ज्वाला), अलात (जलता हुआ काष्ठ), शुद्धाग्नि, उल्का, विद्युत, अशनि (आकाश से गिरते हुए अग्निकण), निर्धात (बिजली का गिरना), रगड़ से उत्पन्न और सूर्यकांतमणि से निकली हुई अग्नि (27) / बादर वायुकायिक अनेक प्रकार के हैं - पूर्व में बहने वाली वायु, पश्चिम से बहने वाली वायु,