SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रियाओं से सम्बंधित अभिनय।। 32. महावीर के च्यवन, गर्भसंहरण, जन्म, अभिषेक, बालक्रीड़ा, यौवनदश, काभोगलीला 2, निष्क्रमण, तपश्चरण, ज्ञानप्राप्ति, तीर्थप्रवर्तन और परिनिर्वाण सम्बंधी घटनाओं का अभिनय (66-84) / नाट्यशास्त्र में रेचित। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में रोचकरेचित पाठ है। आरभटी शैली से नाचने वाले नट मण्डलाकार रूप में रेचक अर्थात् कमर, हाथ और ग्रीवा मटकाते हुए रास नृत्य करते थे- वासुदेवशरण अग्रवाल, हर्ष-चरित, पृ.२३ 2. इससे महावीर की गृहस्थावस्था का सूचन होता है। पटह आदि वाद्य तत, वीणा आदि वितत, कांस्यताल आदि घन और शंख आदि शुषिर के उदाहरण समझने चाहिए। चित्रावली (73-8) में तंत और वितंत का उल्लेख है। तंत अर्थात् तार के और वितंत अर्थात् बिना तार में मढ़े हुए बाजे। जीवाजीवाभिगम (पृ.१८५ अ) में पायंत की जगह पवत्तय (प्रवृत्तक) पाठ है। गीत को सप्तस्वर और अष्टरस संयुक्त, छः दोषरहित और आठ गुणसहित बताया गया है- देखिए, जीवाजीवाभिगम, पृ. 185 / टीकाकार ने नाट्य और अभिनयविधि की व्याख्या न करके इन विधियों को नाट्य के विशारदों से समझने के लिए कहा है। जीवों के प्रकार - जीवाजीवाभिगम तीसरा उपांग है। इसमें महावीर और गौतम गणधर के प्रश्नोत्तर के रूप में जीव और अजीव के भेद-प्रभेदों का विस्तृत वर्णन है। इसमें 9 प्रकरण (प्रतिपत्ति) और 272 सूत्र हैं। तीसरा प्रकरण सब प्रकरणों से बड़ा है, जिसमें देवों तथा द्वीप और सागरों का विस्तृत वर्णन किया गया। जीवाजीवाभिगम के टीकाकार मलयगिरि ने इसे स्थानांग का उपांग बताया है। इस उपांग पर पूर्वाचार्यों ने टीकाएं लिखी थीं, जो गम्भीर और संक्षिप्त होने के कारण दुर्बोध थीं, इसलिए मलयगिरि ने यह विस्तृत टीका लिखी है। मलयगिरि ने अनेक स्थानों पर वाचनाभेद होने का उल्लेख किया है। इसमें सर्वप्रथम जीवों का उल्लेख है। (124)
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy