________________ संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं- त्रस और स्थावर (सूत्र 9) / स्थावरजीव तीन प्रकार के होते हैं- पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय (10) / बादर वनस्पतिकाय बारह होते हैं- वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्वग (ईख आदि), तृण, वलय (कदली आदि जिनकी त्वचा गोलाकार हो), हरित (हरियाली), औषधि, जलरुह (पानी में पैदा होने वाली वनस्पति), कुहण (पृथ्वी को भेदकर पैदा होने वाला वृक्ष) (20) / साधारण बार वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के होते हैं (21) / त्रस जीव तीन प्रकार के होते हैं - तेजस्काय, वायुकाय और औदारिक त्रस' (22) / औदारिक त्रस चार प्रकार के होते हैं - दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पांच इन्द्रिय वाले (27) / पंचेन्द्रिय चार प्रकार के होते हैं - नारक, तिर्यञ्च तीन प्रकार के होते हैं- जलचर, थलचर और नभचर (34) / थलचर जीव चार प्रकार के होते हैं। एक खुर, दोखुर, गंडीपय और सणप्पय (सनखपद)(३६)। नभचर जीव चार प्रकार के होते हैंचम्मपक्खी, लोमक्खी , समुग्गपक्खी और विततपक्खी (36) / मनुष्य दो प्रकार के होते हैं- संमुच्छिम मनुष्य और गर्भोत्पन्न मनुष्य (41) / देव चार पकार के होते हैं- भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक (42) / रत्न के नाम - .. ... इसी प्रसंग में इसमें सोलह प्रकार के रत्न का उल्लेख है- रत्न वज्र, वैडूर्य लोहित, मसारगल्ल, हंसगर्भ पुलक, सौगन्धिक, ज्योतिरस, अंजन, अंजनपुलक, रजत, जातरूप, अंक स्फटिक अरिष्टि (69) / प्रज्ञापना नामक उपांग में भी इनका उल्लेख है। ___ अस्त्र-शस्त्रों के नाम- मुद्गार, मुसुंढि, करपत्र (करवत), असि, शक्ति, हल, गदा, मृसल, चक्र, नाराच, कुंत, तामर, शूल, लकुट, भिडिपाल' (89) / .. धातुओं के नाम- लोहा, ताम्बा, सीसा, रूप्प, सुवर्ण, हिरण्य, कुंभकार की अग्नि, ईंट पकाने की अग्नि, कवेलू पकाने की अग्नि, यंत्रपाटक चुल्ली (जहां गन्ने का रस पकाया जाता है) (89) / मद्यों के नाम - ... चन्द्रप्रभा (चन्द्रमा के समान जिसका रंग हो) मणिशलाका, वरसीधु, वरवारूणी, फलनिर्याससार (फलों के रस से तैयार की हुई मदिरा),