________________ वाद्य), गोमुखी, मर्दल (उभयतः सम) वीणा, विपंची (त्रितंत्री वीणा), वल्लकी (सामान्यतो वीणा) महती, कच्छभी (भारती वीणा), चित्रवीणा, सबद्धी, सुबोषा, नदिघोषा, भ्रामरी, षडभ्रामरी, वरवादनी (सप्ततंत्री वीणा), तूणा, तुम्बवीणा, (तुंबयुक्त वीणा), आमोद झञ्झा, नकुल, मुकुंद (मुरज वाद्यविशेष) हुडुक्का, 'विचिक्की, करटा', डिंडिम, किणित, कडंब, दर्दर, दर्द रिका (यस्य चतुर्भिश्चरणेरवस्यानं भूवि स गोधाचार्मावनद्धो, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, 101), कलशिका, महुया, तल, ताल, कांस्यताल, रिंगिसिका (रिंगिसिंगिका, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति), लत्तिया, मगरिका, शिशुभारिका, वंश, वेणु, वाली (तूणविशेषः, स हि मुखे दत्वा वाद्यते) परिली और बद्धक (पिरलोबद्धक तृणरूपवाद्यविशेषौ, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, पृ.१०१)३ (59) / इन वाद्यों के अतिरिक्त राजप्रश्नीय नामक उपांग में निम्न नाट्यविधियों का भी उल्लेख है। नाट्यविधि : तत्पश्चात् सूर्याभदेव ने बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों का प्रदर्शन किया। इस प्रसंग पर अभिनीत बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों का उल्लेख इस प्रकार है - 1. स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्त्त, भ...स, कलश, मत्स्य और दर्पण के दिव्य अभिनय। आवर्त्त, प्रत्यावर्त, श्रेणी, प्रश्रेणी, स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्मानव, वर्धमानक (सरावसंपुट), मत्स्याण्डक, मकराण्डक', जार, मार', पुष्पावलि, पद्मपत्र, सागरतरंग, बसंतलता और पद्मलता के चित्र का अभिनय। ईहामृग, वृषभ, घोड़ा, नर, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु, शरभ, चमर, कुंजर 5, वनलता, पद्मलता के चित्र का अभिनय। / एकतोवक्र, द्विधावक, एकतश्चक्रवाल, द्विध्धाचक्रवाल, चक्रार्ध, चक्रवाल का अभिनय। चन्द्रावलिका प्रविभक्ति, सूर्यावलिका प्रविभक्ति, वलयावलिका प्रविभक्ति, इंसावलिका प्रविभक्ति, एकावलिका प्रविभक्ति, तारावलिका प्रविभक्ति, मुक्तावलिका प्रविभक्ति, कनकावलिका प्रविभक्ति और रत्नावलिका प्रविभक्ति का अभिनय। . . (122