________________ 72. सेउणरुअ (शकुन और विभिन्न आवाजों का ज्ञान)। . रायपसेणीय और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति नामक उपांग की टीका में भी इन कलाओं के उल्लेख हैं। आजीविक श्रमण - दुर्घरंतरिया : एक घर में भिक्षा ग्रहण कर दो घर छोड़कर भिक्षा लेने वाले। तिघरंतरिया : एक घर में भिक्षा ग्रहण कर तीन घर छोड़ कर भिक्षा लेने वाले। सत्तघरंतरिया : एक घर में भिक्षा ग्रहण कर सात घर छोड़कर भिक्षा . लेने वाले। उप्पबेटिया : कमल में डंठल खाकर रहने वाले। .. घरसमुदाणिय : प्रत्येक घर से भिक्षा लेने वाले। . . विजुअंतरिया : बिजली गिरने के समय भिक्षा न लेने वाले। उट्टियसमण : किसी बड़े मिट्टी के बर्तन में बैठकर तप करने वाले। औपपातिकसूत्र के अनुसार ये आजीविक श्रमण मरकर अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं। आजीविक मत के गोशालक आदि का उल्लेख भगवतीसूत्र शतक 15 में भी हैं। अन्य श्रमण : आजीविकों के अतिरिक्त कुछ अन्य श्रमणों के उल्लेख भी औपापतिक सूत्र में हैं, अत्तुक्कोसिय : आत्मप्रशंसा करने वाले। परपरिवाइय : परनिंदा करने वाले, अवर्णवादी। भूइकम्मिय : ज्वरग्रस्त लोगों को भूति (राख) देकर निरोग करने वाले। भुजो-भुजो काउयकारक- वृद्धि के लिए बार-बार स्नान आदि करने यता करन वाला वाले। सात निह्नव : औपपातिकसूत्र में जैन संघ में हुए सात निह्नवों का भी उल्लेख है बाहुरस : इस मत के अनुसार कार्य क्रिया के अंतिम समय में पूर्ण (120)