________________ उपागा उपांग साहित्य सामाजिक एवं सांस्कृतिक सामग्री (एक संकलन) जैन आगम साहित्य में उपांग साहित्य का महत्त्व उसमें उपलब्ध सामाजिक एवं सांस्कृतिक सामग्री है। उपांग साहित्य में जीवाजीवाभिगम और प्रज्ञापना के अतिरिक्त शेष ग्रंथों में जैन तत्त्वज्ञान की अपेक्षा सामाजिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों की सूचनाएं अधिक हैं। मात्र इतना ही नहीं, जीवाजीवाभिगम और प्रज्ञापना में भी जीवविज्ञान, शरीर संरचना, भाषा, सभ्यदेश आदि से सम्बंधित अनेकों सूचनाएं हैं। औपपातिक और राजप्रश्नीय में नगर संरचना, भाषा सभ्यदेश आदि से सम्बंधित अनेकों सूचनाएं हैं। औपपातिक और राजप्रश्नीय में नगर संरचना और चंद्रसूर्य प्रज्ञप्ति में प्राचीन ज्योतिषशास्त्र से सम्बंधित अनेक सूचनाएं हैं। जीवाजीवाभिगम वनस्पतिजगत् और पशुजगत् के सम्बंध में विशेष जानकारी प्रदान करता है, तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भूगोल और कालचक्र सम्बंधी सूचनाएं हैं। प्रस्तुत आलेख में उपांग साहित्य के ग्रंथों के आधार पर जैन साहित्य के बृहद् इतिहास भाग 2 में संकलित कुछ महत्त्वपूर्ण सामग्री यहां प्रस्तुत की जा रही है। हमें विश्वास है कि प्रस्तुत सामग्री को पढ़कर जिज्ञासुओं में उपांग साहित्य के अध्ययन की विशेष रुचि उत्पन्न होगी। औपपातिकसूत्र में दण्ड के निम्न प्रकारों का उल्लेख है- लोहे या लकड़ी के बंधन में हाथ पैर बांध देना (अंडुबद्धग), लोहे की जंजीर में पैर बांध देना (णिअबद्धग), पैरों में भारी लकड़ी बांध देना (हडिबद्धग), जल में डाल देना (चारगबद्धग), हाथ, पैर, कान, नाक, ओंठ, जीभ, सिर, मुख (गले की नली), उदर और लिंग (वेकच्छ) को छेद देना, कलेजे का मांस खींच लेना, आंख, दांत, अण्डकोष और ग्रीवा को खींच लेना, चावल के बराबर शरीर के टुकड़े कर देना, इन टुकड़ों को जबर्दस्ती भक्षण करना, रस्सी से बांधकर गड्ढे में लटका देना, हाथ बांधकर वृक्ष की शाखा में लटका देना, चंदन की भांति बिलोना, लकड़ी की भांति फड़ना, ईख की भांति पेरना, शूली पर चढ़ा देना, शूल को मस्तक के आर-पार कर देना, खार में डाल देना, चमड़े की भांति उखाड़ना, लिंग को तोड़ना, दावानल में जला देना और कीचड़ में डुबो देना।