________________ मृत्यु के प्रकार भूख आदि से पीड़ित होकर मर जाना, इंद्रियों की परवशता के कारण मर जाना, निदान (इच्छा) करके मरना, भीतरी घाव से मरना, पर्वत या वृक्ष से गिरकर या निर्जल देत में मरना, जल में डूबकर मरना, विष भक्षण कर अथवा शस्त्रघात से मरना, फांसी पर लटक जाना, गिद्ध पक्षियों से निदारित किया जाना या किसी जंगल में प्राण त्याग देना (38) / उपांग साहित्य में व्रती साधु, तापस परिव्राजक और श्रमण उपांग साहित्य के प्रथम ग्रंथ औपपातिकसूत्र में उस युग के व्रती, साधु, परिव्राजक, श्रमण आदि का उल्लेख मिलता है, जो उस युग की धर्म परम्परा या साधना विधियों के ज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। (अ) व्रती और साधु गौतम : यह बैल लोगों के चरण स्पर्श करता था, भिक्षा मांगते समय गौतम साधु इस बैल को साथ रखते थे। . गोव्रतिक : गोव्रत रखने वाले। गाय की तरह ये साधु तृण-पत्र आदि का ही भोजन करते. हैं और उसके समान ही चर्या करते हैं। इसका उल्लेख मज्झिमनिकाय आदि में भी मिलता है। - गृहिधर्म : ये देव और अतिथि आदि को दान देकर संतुष्ट करते हैं। इस प्रकार गृहस्थ धर्म का पालन करते हैं। - धर्मचिंतक - धर्मशास्त्र के पाठक। अविरुद्ध : जो देवता, राजा, माता, पिता, पशु आदि की सम्मानभाव से भक्ति करते हों, जैसे वैश्यायनपुत्र। सबकी विनय करने के कारण ये विनयवादी भी कहे जाते हैं। गीता में इस दृष्टिकोण का उल्लेख है। विरुद्ध : इन्हें अक्रियावादी भी कहते हैं, पुण्य-पाप, परलोक आदि में ये विश्वास नहीं करते। . वृद्ध : वृद्ध अवस्था में संन्यास ग्रहण करने वाले या पूर्व से चली आई वृद्ध परम्परा को मानने वाले। श्रावक : धर्मशास्त्र सुनने वाले ब्राह्मण। ये सभी साधु सरसों के तेल को