________________ आवासय या आवश्यक से मूलाचारकार का तात्पर्य किस ग्रंथ से हैयह भी विचारणीय है। टीकाकार वसुनन्दी ने मात्र केवल इतना निर्देश दिया है कि आवश्यक से तात्पर्य सामायिक आदि षड्-आवश्यक कार्यों का प्रतिपादक ग्रंथा दिगम्बर परम्परा में इस प्रकार का कोई ग्रंथ नहीं रहा है, जबकि श्वेताम्बर परम्परा में आवश्यक नामक स्वतंत्र ग्रंथ प्राचीन काल से उपलब्ध है और उसकी गणना ग्रंथ के रूप में की गई है। अतः, स्पष्ट है कि मूलाचारकार का आवश्यक से तात्पर्य श्वेताम्बर परम्परा में मान्य आवश्यकसूत्र से ही है। . अंतिम ग्रंथ, जिसका इस गाथा में उल्लेख है, वह धर्मकथा है। यह बात निश्चित ही विचारणीय है कि धर्मकथा से ग्रंथकार का तात्पर्य किस ग्रंथ से है। दिगम्बर परम्परा में धर्मकथानुयोग के रूप में जो पुराण आदि साहित्य उपलब्ध है, वह किसी भी स्थिति में मूलाचार से पूर्ववर्ती नहीं है। टीकाकार वसुनन्दी ने धर्मकथा से त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र आदि का जो तात्पर्य लिया है, वह तब तक ग्राह्य नहीं बन सकता, जब तक कि त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का विवेचन करने वाले मूलाचार से पूर्व के कोई ग्रंथ हों। यदि हम त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र से सम्बंधित ग्रंथों को देखते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ये सभी ग्रंथ मूलाचार से परवर्ती ही हैं, अतः यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहता है कि धर्मकथा से मूलाचार का क्या तात्पर्य है। इसके उत्तर के रूप में हमारे सामने दो विकल्प हैं, या तो हम यह मानें कि मूलाचार की रचना के पूर्व भी कुछ चरित्र ग्रंथ रहे होंगे, जो धर्मकथा के नाम से जाने जाते होंगे, किंतु यह कल्पना अधिक संतोषजनक नहीं लगती। दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि धर्मकथा से तात्पर्य 'नायधम्मकहा' से तो नहीं। यह सर्वमान्य है कि 'नायधम्मकहा' की विषयवस्तु धर्मकंथानुयोग से.सम्बंधित है। इस विकल्प को स्वीकार करने में केवल एक ही कठिनाई है कि कुछ अंग आगम भी अस्वाध्याय काल में पढ़े जा सकते हैं- यह मानना होगा। एक और विकल्प हो सकता है। धर्मकथा से तात्पर्य कहीं ‘पउमचरिय' आदि ग्रंथ से तो नहीं है, लेकिन यह कल्पना ही है। मेरी दृष्टि में तो ‘धम्मकहा' से मूलाचार का तात्पर्य ‘नायधम्मकहा' से होगा। मूलाचार में उपर्युक्त ग्रंथों के अतिरिक्त आयारकप्प' और 'जीदकप्प'- ऐसे दो ग्रंथों की और (109)