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________________ अतः एक विकल्प तो यह हो सकता है कि संग्रह से तात्पर्य ‘पंचत्थिकाय संगह' से हो, किंतु यही एकमात्र विकल्प हो, हम यह नहीं कह सकते, क्योंकि अनेक आधारों पर मूलाचार पंचास्तिकाय की अपेक्षा प्राचीन है। दूसरे, यदि मूलाचार को कुन्दकुन्द के ग्रंथों का उल्लेख इष्ट होता, तो वे समयसार का भी उल्लेख करते। पुनः, कुन्दकुन्द द्वारा 'समय' शब्द का जिस अर्थ में प्रयोग किया गया है, मूलाचार के समयसाराधिकार में 'समय' शब्द उससे भिन्न अर्थ में ग्रहण हुआ है। श्वेताम्बर परम्परा में संग्रहणीसूत्र का उल्लेख उपलब्ध होता है। पंचकल्पमहाभाष्य के अनुसार संग्रहणियों की रचना आचार्य कालक ने की थी। पाक्षिकसूत्र में नियुक्ति और संग्रहणी- दोनों का उल्लेख है। संग्रहणी आगमिक ग्रंथों का संक्षेप में परिचय देने वाली रचना है। चूंकि आगमों का अस्वाध्याय काल में पढ़ना वर्जित था, अतः यह हो सकता है कि आचार्य कालक आदि की दृष्टि में जो संग्रहिणियां थीं, उन्हीं से ग्रंथकार का तात्पर्य रहा हो। संग्रह से पंचसंग्रह अर्थ ग्रहण करने पर समस्या उठ खड़ी होती है। श्वेताम्बर पंचसंग्रह, जो चंद्रऋषि की रचना माना जाता है, वह किसी भी स्थिति में सातवीं शताब्दी से पूर्व का नहीं है। दिगम्बर परम्परा का पंचसंग्रह तो और भी परवर्ती ही सिद्ध होता है। उसमें उपलब्ध धवला आदि का कुछ अंश उसे 10 वी -11 वीं शती तक ले जाता है। अतः, मूलाचार में संग्रह के रूप में जिस ग्रंथ का उल्लेख है, वह ग्रंथ वर्तमान श्वेताम्बर दिगम्बर-परम्परा का उपलब्ध पंचसंग्रह तो नहीं हो सकता, अन्यथा हमें मूलाचार की तिथि को काफी नीचे ले जाना होगा। गाथा के संदर्भ-स्थल को देखते हुए उसे प्रक्षिप्त भी नहीं कहा जा सकता। यद्यपि यह बात निश्चित ही सत्य है कि पंचसंग्रह में जिन ग्रंथों का संग्रह किया गया है, उनमें कुछ ग्रंथ शिवशर्मसूरि की रचनाएं हैं और इस दृष्टि से प्राचीन भी हैं। सम्भवतः, यही लगता है कि उपलब्ध पंचसंग्रह के पूर्व भी कर्म सिद्धांत से सम्बंधित कसायपाहड, सतक, सित्तरी आदि कुछ ग्रंथों का एक संग्रह रहा होगा और जो संग्रह नाम से प्रसिद्ध था। हो सकता है कि मूलाचार ने उसी का उल्लेख किया हो। थुदि या स्तुति से मूलाचार का तात्पर्य किस ग्रंथ से है- यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है। टीकाकार वसुनन्दी ने इसका तात्पर्य समन्तभद्र की ‘देवागम' नामक स्तुति (107)
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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