________________ उपलब्ध हैं। इन ग्रंथों में सर्वप्रथम आराधना का नाम है। आराधना के नाम से सुपरिचित ग्रंथ शिवार्य का भगवती आराधना या मूलाराधना है। यह सुस्पष्ट है कि भगवती आराधना मूलतः दिगम्बर परम्परा का ग्रंथ न होकर यापनीय संघ का ग्रंथ है। मूलाचार में जिस आराधना का निर्देश किया गया है, वह भगवती आराधना ही है। मूलाचार भी उसी यापनीय परम्परा का ग्रंथ प्रतीत होता है, क्योंकि मूलाचार के रचनाकार ने सर्वप्रथम उसी ग्रंथ का नामोल्लेख किया है। दिगम्बर परम्परा में आराधना नाम का कोई ग्रंथ नहीं है, यद्यपि श्वेताम्बर परम्परा में मरणविभक्ति नाम का जो ग्रंथ है, उसकी रचना जिन आठ प्राचीन श्रुत ग्रंथों के आधार पर मानी जाती है, उनमें मरणविभक्ति, मरणविशोधि, मरणसमाधि, संलेखनाश्रुत, भत्तपरिज्ञा, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान और आराधना हैं। प्रस्तुत गाथा में मरणविभक्ति, प्रत्याख्यान और आराधना- ऐसे तीन स्वतंत्र ग्रंथों के उल्लेख हैं। यह सम्भव है कि मूलाचार का आराधना से तात्पर्य इसी प्राचीन आराधना से रहा होगा। यह आराधना भगवती आराधना की रचना का भी अधिकार रही है। यदि हम आराधना का तात्पर्य भगवती आराधना लेते हैं, तो हमें इतना निश्चित रूप से स्वीकार करना होगा कि मूलाचार का रचनाकाल भगवती आराधना की रचना के बाद का है और दोनों ग्रंथों के आंतरिक साक्ष्यों के आधार पर यह निर्णय करना होगा कि इनमें से कौन प्राचीन है। चूंकि यह एक स्वतंत्र निबंध का विषय होगा, इसलिए इसकी अधिक गहराई में नहीं जाना चाहता, किंतु इतना अवश्य उल्लेख करूंगा कि यदि भगवती आराधना की रचना मूलाचार से परवर्ती है, तो मूलाचार में लिखित यह आराधना मरणसमाधि की अंगीभूत आराधना ही है। दोनों का नाम साम्य भी इस धारणा को पुष्ट करता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि किसी समय आराधना स्वतंत्र ग्रंथ था, जो आज मरणविभक्ति में समाहित हो गया है। श्वेताम्बर परम्परा में आगम ग्रंथों की प्राचीनतम व्याख्याओं के रूप में नियुक्तियां लिखी गईं। श्वेताम्बर परम्परा में दस नियुक्तियां सुप्रसिद्ध हैं। नियुक्ति सम्भवतः द्वितीय भद्रबाहु की रचना मानी जाती है, किंतु कुछ नियुक्तियां उससे भी प्राचीन हैं। यह भी सुस्पष्ट है कि मूलाचार के षडावश्यक अधिकार में (105)