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________________ है, तो फिर मूलाचार को भी हमें यापनीय परम्परा का ही ग्रंथ मानना होगा। यद्यपि प्रेमीजी ने मात्र भगवती आराधना से इसकी गाथाओं की समरूपता की चर्चा की है, परंतु बात यहीं समाप्त नहीं होती। मूलाचार में श्वेताम्बर परम्परा में मान्य अनेक ग्रंथों की गाथाएं समान रूप से उपलब्ध होती हैं। उनमें शौरसेनी और अर्द्धमागधी अथवा महाराष्ट्री के अंतर के अतिरिक्त कहीं किसी प्रकार का अंतर भी नहीं है। मूलाचार के बृहद् प्रत्याख्यान नामक द्वितीय अधिकार में अधिकांश गाथाएं महापच्चक्खान और आउरपच्चक्खान से मिलती हैं। मूलाचार के बृहद् प्रत्याख्यान और संक्षिप्त प्रत्याख्यान- इन दोनों अधिकारों में क्रमशः 71 और 14 गाथाएं अर्थात् कुल 85 गाथाएं हैं। इनमें 70 गाथाएं तो आतुर प्रत्याख्यान नामक श्वेताम्बर परम्परा के प्रकीर्णक से मिलती हैं, शेष 15 गाथाओं में भी कुछ महापच्चक्खान एवं चंद्रवेध्यक में मिल जाती हैं। ये गाथाएं श्वेताम्बर परम्परा में प्रकीर्णकों के रूप में आज भी स्वीकार्य हैं। पुनः, अध्याय का नामकरण भी उन्हीं ग्रंथों के आधार पर है। इसी प्रकार, मूलाचार के षडावश्यक अधिकार की 192 गाथाओं में से 80 गाथाएं आवश्यकनियुक्ति से समानता रखती हैं। इसके अतिरिक्त, इसी अधिकार में पाठभेद के साथ उत्तराध्ययन, अनुयोगद्वार और दशवैकालिक से अनेक गाथाएं मिलती हैं। पंचाचार अधिकार में सबसे अधिक 222 गाथाएं हैं। इसकी 50 से अधिक गाथाएं उत्तराध्ययन और जीवसमास नामक श्वेताम्बर ग्रंथ में समान रूप से पाई जाती हैं। इसमें जो षड्जीवनिकाय का विवेचन है, उसकी अधिकांश गाथाएं उत्तराध्ययन के 36 वें अध्याय और जीवसमास में हैं। इसी प्रकार 5 समिति, 3 गुप्ति आदि का जो विवेचन उपलब्ध होता है, वह भी उत्तराध्ययन और दशवैकालिक में किंचित् भेद के साथ उपलब्ध होता है। इसी प्रकार, मूलाचार के पिण्डशुद्धि अधिकार की 83 गाथाएं हैं, इनमें भी अधिकांश गाथाएं श्वेताम्बर परम्परा के पिण्डनियुक्ति नामक ग्रंथ में यथावत रूप में उपलब्ध होती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि मूलाचार की अधिकांश सामग्री श्वेताम्बर परम्परा के उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, पिण्डनियुक्ति, आउरपच्चक्खाण, महापच्चक्खाण, आवश्यकनियुक्ति, चंद्रवेध्यक आदि श्वेताम्बर परम्परा के मान्य (103)
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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